________________ अन्नाणया दोसवसाणुभावा मुणंति तत्तं न हु किं पि पावा। भवंति ते दुक्खदरिददीणा परम्मि लोए सुहविप्पहीणा // 60 // पुण्णोदएणं नणु कोई जीवो, भिसं समुज्जोइयनाणदीवो। मोहंधयारप्पसरं दलित्ता पिच्छेइ निव्वाणपहं पइत्ता // 61 // तत्यंतराया बहवे पसिद्धा, कोहाइणो वेरिगणा विरुद्धा (समिद्धा)। हरंति ते धम्मधणं छलेणं, को निज्जिणेई नणु ते बलेणं // 62 // पावाइं पावा परिसेवमाणा, धम्मं जिणुद्दिट्टमयाणमाणा। अन्नाणक?हिं कयाभिमाणा खिवंति अप्पं नरए अयाणा // 63 // न जाइगव्वं हिययम्मि कुज्जा, कुलाभिमाणं पुण नो वहिज्जा / रूवं नवं इस्सरियं अउव्वं लधु सुबुद्धी न धरिज्ज गव्वं // 64 // अहं खु लोए बलवं तवस्सी, सुयाहिउ वा अहयं जसंसी। लाभे वि संते मुइउ न हुज्जा, तहप्पणो उक्करिसं न कुज्जा // 65 / / वालग्गमित्तो वि न सो पएसो, जहणोवइन्नो भुवणम्मि एसो। जीवो समावज्जियपावलेसो; न पाविउ कत्थ य सुक्खलेसो // 66 // सुदुल्लहं पाविय माणुसत्तं, कुलं पवित्तं तह अज्ज खित्तं / तत्तं सुणित्ता सुगुरूहि वुत्तं, तुझं पमायायरणं न जुत्तं // 67 // बालत्तणं खिड्डपरो गमेइ, तारुणए भोगसुहे रमेई। थेरत्तणे कायबलं वमेई मूढो मुहा कालमइक्कमेइ // 68 // लहुत्तणाउ वि न जेण पुन्नं, समज्जियं सत्वगुणोहपुन्नं / थेरतणे तस्स य नावयासो, धम्मस्स जत्थथि जरापयासो // 69 // - पुध्विं कयं जं सुकयं उदारं, पत्तं नरत्तं नणु तेण सारं। करेसि नो इत्थ जया सुकम्मं, कहं सुहं जीव लहेसि रम्मं // 70 // तवेण पक्खालियकम्मलेवो, अन्नो जिणिदाउ न कोइ देवो / गुरू सुसाहू जिणरायवुत्तं, तत्तं खु सम्मत्तमिमं निरुत्तं // 71 // 205.