________________ // 4 // पू.आ.श्रीदेवेन्द्रसूरिविरचिता // दानोपदेशमाला // सयलसमीहियकरणं, रिसहजिणं पणमिऊण णाणधणं / दाणोवएसमालं भणामि मंगलमणीसालं णिरुवमसुहाण ठाणं दुरियाण पणासणं गुणनियाणं / तिहुयणसिद्धिनिहाणं आयरह सया जणा दाणं // 2 // चउगइणिवारयाणं, धम्माणं चउविहाण मज्झम्मि / पढमं दाणं पवरं, परूवियं वीयराएहिं // 3 // तं पुण पंचपगारं सुपत्तदाणं तहा उचियदाणं / अणुकंपाभयदाणं पण्णत्तं णाणदाणं च तेसि मज्झे पढमं सुपत्तदाणं मुणीहिं परिकहियं / संसारजलहिणिवडिरणराणमुत्तरणे तरणिसमं सिरिरिसहसामिणा धणभवम्मि दिणं मुणीण घयदाणं / तस्सेव पभावाओ समज्जियं बोहिवरबीयं . // 6 // मघवावि घरे तेसिं पूरेइ सिरिं च कुणइ गुणगहणं / वावंति णियं सुद्धं जे वित्तं सत्तखित्तेसु // 7 // उत्तुंगचंगतोरणविरायमाणं सहस्सथंभमयं / णाणामंडवरयणापगुणं भवणं जिणिदाणं उल्लसिरकिरणमाला, णिणासियदुविहतिमिरमब्भारे / तिहुयणगुरुण बिंबे पवालमणिरययकणयमये जिणआगमाण अंगोवंगाणं पुत्थयाणि विविहाणि / सिरिसमणसमणिसावयसावियजणपूयणं चेव // 10 // णाओवज्जियविहवेण करेइ जो कारवेइ भावेणं / सो भरहणरवरो इव भुंजिय रज्जं सिवं लहइ // 11 // 233 // 8 // // 9 //