________________ निम्मलमहासईणं, सीलवयं खंडिउं न सक्को वि। सक्केइ जेण ताणं, जीवाओ सीलमब्भहिअं // 105 // सच्चिअ सइ त्तिं भण्णइ, जा विहुरे वि हु न खंडइ सीलं। तं किल कणयं कणयं, जं जलणाओ वि विमलतरं // 106 // निअसत्तवज्जिआओ, पावाओ नराण दूसणं दिति / किं काहीमो अम्हे, निरग्गला जेणिमे पुरिसा // 107 // तिहुयणपहुणा वि हु रावणेण जीसे न रोममित्तं पि / संचालिअं न तीए, चरिअं चित्तंति सीआए। // 108 // जा सीलभंगसामग्गि-संभवे निच्चला सई एसा। इयरा महासईओ, घरे घरे संति पउराओ // 109 // तह वि हु एगंताइ-संगो निच्चं पि परिहरेअव्वो।। जेण य विसमो इंदिय-गामो तुच्छाई सत्ताइं . // 110 // जइ वि हु नो वयभंगो, तह वि हु संगाओ होइ अववाओ। दोसनिहालणनिउणो, सव्वो पायं जणो जेण // 111 // तो सव्वहा वि सीलम्मि, उज्जमं तह करेह भो भव्वा!। बह पावेह लहु च्चिय, संसारं तरिय सिवसुखं // 112 // इय सीलभावणाए, भावंतो निच्चमेव अप्पाणं। धन्नो धरिज बंभं, धम्ममहाभवणथिरथंभं // 113 // इह जयसिंहमुणीसर-विणेयजयकित्तिण कयं एयं / सीलोवएसमालं, आराहिय लहह बोहिसुहं // 114 //