________________ // 57 // // 58 // // 59 // // 60 // // 61 // // 62 // सीलकलिएहिं सद्धि, संगो वि हु बहुगुणावहो होइ। कप्पूरसइज्झत्तं पि, कुणइ वत्थूण सुरहित्तं सयलो वि गुणग्गामों, सीलेण विणा न सोहमावहइ / नयणविहूणं व मुहं, लवणविहूणा रसवइ व्व विसविसहरकरिकेसरि-चोरारिपिसायसाइणीपमुहा / सव्वे वि असुहभावा, पहवंति न सीलवंताणं सीलब्भट्ठाणं पुण, नामग्गहणंपि पावतरुबीयं / पुण तेसि पि गई तं, जाणइ हु केवली भयवं बंधणछेयणताडण-मारणपमुहाई विविहदुक्खाई / इह लोयम्मि तहा थिर-मजसं पावंति गयसीला दालिद्दखुद्दवाही, अप्पाउकुरूवयाइं असुहाई। . नरयंताई वसगाई, विगलियसीलाण परलोए निरुवमतवगुणरंजिय-सुरो वि सो कूलवालओ साहू / मागहियासंगाओ, गलियवओ पाविओ कुगई समणी वि हु विसयरसा, पुव्वभवे दोवई कयनियाणा। सिवदायगं वि हु तवं, मुहाइ हारिंसु हा मोहो . अमरनरासुरविसरिस-पोरसचरिओ वि पररमणीरसिओ। विसमदसं संपत्तो, लंकाहिबई वि रंकु व्व नेउरपंडियदत्त-दुहियापमुहाण अज्ज वि ज़यम्मि / असइ त्ति घोसघंट-टंकारो विरमइ न तारो . एवं सीलाराहण-विराहणाणं च सुक्खदुक्खाई। इय जाणिय भो भव्वा !, मा सिढिला होह सीलम्मि बंभव्वयधारीणं, नारीसंगो अणत्थपत्थारी / मूसाण व मंजारी, इअ निसिद्धं च सुत्ते वि // 63 // // 64 // // 65 // // 66 // // 67 // // 68 // 215