________________ // 512 // // 513 // // 514 // // 515 // // 516 // // 517 // का गणणा अन्नेसिं, जं जिणमय-भाविएसु वि मणेसु / लहलहइ लोहलइया, संतोस-तुसारवरिसे वि ता ज्झत्ति अट्टरुद्दाण, मूलबीयं निसुंभिउं लोभं / मुच्छा-विच्छेयकर, संतोस-रसायणं पियह कोहाइए कसाए, उप्पज्जंते विज्झति झंपिज्जा / रोगेसु व कायव्वो, थोव त्ति अणायरो न जओ अणथोवं वणथोवं, अग्गीथोवं कसायथोवं च / नहु भे ! वीससियव्वं, थोवं पि हु तं बहुं होइ उवसंतकसायाणं, निच्छयओ होइ भावचारित्तं / तं चिय वयंति मुणिणो, अवंज्झबीयं सिवतरुस्स संतेसु संपराएसु, चरियमइदुक्करं पि सामन्नं / वावन्नदंसणाण व, न होइ सिवसाहयं किंच जं अइदुक्खं लोए, जं च सुहं उत्तमं तिहुयणम्मि / तं जाण कसायाणं, वुड्ढि-क्खयहेउयं सव्वं तम्हा तह परिचितह, तह जंपह तह य चिट्ठह सुसमणा। जह स-परकिलेसकरो, न होइ उदओ कसायाणं इय पडिहणियकसाया, पयडइ मिति समत्तसत्तेसु / पावचरियाउ विरमह, हिओवएसे सया रमह इय अभयदेवमुणिवइ-विणेय सिरिदेवभद्दसूरीण / अनिउणमईहिं सीसेहि, सिरिपभाणंदसूरीहिं उवजीविऊण जिणमय-महत्थ-सत्थत्थ-सत्थ-सारलवे / सपरेसि हिओ एसो, हिओवएसो विणिम्मविओ जं इह सुत्तुत्तिन्नं, न सम्मयं जं च पुव्वसूरीणं / तं सुयहरेहि सव्वं, खमियव्वं सोहियव् च // 518 // // 519 // // 520 // // 521 // // 522 // // 523 // 209