________________ आहारगा वि मणनाणिणो वि सव्वोवसंतमोहा वि / हुंति पमाय-परवसा, तदणंतरमेव चउगइया // 488 // निहणिज्जंतो वि इमो, संजमजोगुज्जएहि साहुहि / उठेइ पुणो लद्धहत्थालंबं कसायाणं // 489 // तम्हा कसाय-पसरं, रुभिज्ज मणे मणं पि नणु एए। चिरकालविढत्तं पि हु, चरित्तवित्तं हरंति जओ // 490 // जं अज्जियं चरित्तं, देसूणाए वि पुव्वकोडिए। तं पि कासाइयमित्तो हारेइ मुणी मुहुत्तेण // 491 // संजलणावि. हु एए, नयंति निहणं चरित्त-महक्खायं / अन्ने पुणो पुणब्भव-तरूण सिंचंति मूलाई // 492 // कोहो पीइलयाए, पवि संपाउव्व निम्वियारत्तं / पयडइ पडुपन्नाण वि, अन्नाणांण वि वियंभंतो // 493 // चितइ अचिंतणिज्जं, वयइ य ज सव्वहा अवयणिज्जं / कुणइ अकिच्चं पि नरो, रोसपसत्तो विवित्तो वि // 494 // ता खंति-खग्गवग्गिर-करहिं धीरेहिं साहुसुहडेहि। निहणेयव्वो कोहो, विवक्खजोहुव्व दुव्विसहो // 495 // उयह खमाबल-मतुलं, चलंतु भडकोडिपरिवुडा वि पुरा / जे भीया ते विहिया, खमाइ एगागिणो अभया // 496 // जइ वि खमापरिभूया, जइ वि खमंतस्स आयरो नत्थि। सह वि खमा कायव्वा, खमासमो बंधयो नत्थि // 497 / / जाइ-कुल-रूव-पमुहा, भव-भवे वि सरिसत्तणमुर्विता। कह हुंतु मयनिमित्तं, पत्ता वि हु मुणिय-तत्ताणं // 498 // जो जस्स मयट्ठाणस्स, वहइ निरवग्गहं समुक्करिसं / सो तं चिय नियमेण, हीणयरं लहइ पइजम्म // 499 // 207