________________ // 407 // ओहेण सुणिय सम्मं, विसयविभागं अयाणिय इमेसि। जं किंचि सुत्तमित्तं, जुत्तिसुहं संगहेऊण // 404 // पुव्वायस्यि-कमागय-तयत्थमवहत्थिऊण मयवसओ। जं पयडंति कुमग्गं, तमभिणिवेसस्स माहप्पं * // 405 // को वा दुसमसमुत्थे, मोहहए इह जणे उवालंभो / मिच्छाभिणिवेसहया, जमासि जिणनाह-समए वि // 406 // . उयह हयमोहमहिमं, जं जिण-जिणपवयणेसु संतेसु।। पयडिंसु केइ कुपह, दिटुंतो निण्हवा इत्थ इय एसो भे ! कहिओ, उत्तम-गुण-संगहो समासेण / इण्डिं विरइ-सरूवं, सुयाणुसारेण पयडेमि // 408 // विरई इह पन्नत्ता, जिणेहिं दुक्कम्म-मम्म-महणेहिं / आसवदार-निरोहो, सो पुण देसे य सव्वे य // 409 // पाणिवहाईयाणं, पावट्ठाणाण-देसपडिसेहो / देसविरइ त्ति समणो-वासगधम्मु त्ति सा होइ // 410 // पंच य अणुव्वयाई, गुणव्वयाइं तु हुँति तिन्नेव / सिक्खावयाणि चउरो, इय गिहिधम्मो इमे ते य // 411 // पाणिवह-मुसावाए, अदत्त-मेहुण-परिग्गहे चेव / दिसि-भोग-दंड-समइय-देसे तह पोसह-विभागे // 412 // जावज्जीवं जीवं, थूलं संकप्पियं निरवराहं / तिव्वकसाओ मण-वय-तणूहिं न हणे न य हणावे // 413 // वह-बंध-छविच्छेयं, अइभारं भत्त-पाणवुच्छेयं / पाणिवहाओ विरओ, वज्जिज्ज इमे अईयारा // 414 // अलियं पंचविगप्पं, कन्ना-गो-भूमि-नासहरणेसु 1 कूडगसक्खिज्जम्मि य, इह अइयारे इमे चयसु . // 415 // 200