________________ // 392 // // 393 // // 394 // // 395 // // 396 // // 397 // सम्मत्ताइगुणोहो, अणभिणिविट्ठस्स माणसे वसइ। तम्हा कुगइपवेसा, निरुभियव्वो अभिनिवेसो जह अज्जिन्नाउ जरं, जहंधयारं च तरणिविरहाओ। तह मुणह निसंसाओ, मिच्छत्तं अहिणिवेसाओ पसरइ गाढावेगो, जस्स मणे अभिणिवेस-विसवेगो। तम्मि पउत्तो वि गुरू-वएसमंतो न संकमइ इक्को वि अभिनिवेसो, सदप्प-सप्पुव्व सप्पिरो पुरओ। रुंभइ वियंभमाणं, नरिंदसिन्नं व गुणनिवहं जस्स मण-भवणमणहं, तिव्वाभिणिवेससंतमसछ्नं / वित्थरइ तत्थ न धुवं, पयत्थ-पयडणपरा दिट्ठी कट्ठमणुट्ठाणमणुट्ठियं पि, तवियं तवं पि अइतिव्वं / परिसीलियममलसुयं, ही हीरइ अभिणिवेसेण - अहह भवन्नवपारं, चरित्तपोएण के वि पत्ता वि। तम्मज्झमिति पुण, अहिणिवेस-पडिकूल-पवणहया मुत्तूण मुक्खमग्गं, निग्गंथं पवयणं ह हा ! मूढा / मिच्छाभिणिवेसहया, भमंति संसारकंतारे कह ताव जणो सुक्खी, उदग्गकुग्गहदवग्गितवियंगो। जाव न जिणवयणामय-दहम्मि निव्ववइ अप्पाणं जिणमयरहस्ससुन्नो, मिच्छाभिणिवेसमुव्वहऊ अन्नो / सियवायखायबुद्धी, वि कुग्गहं जंति हि मोहो जिणपन्नत्तस्स सुयस्स, भगवओ भाववित्तिममुणंता / विलियनाणा लोया, निरइसया संपइयपुरिसा दव्वं खित्तं कालं, भावं तह नाण-किरिय-नयजोगं / - उस्सग्गं अववायं, ववहारं निच्छयनयं च // 398 // // 399 // // 400 // // 401 // // 402 // // 403 // 199