________________ // 416 // // 417 // // 418 // // 419 // // 420 // // 421 // सहसा अभक्खाणं, रहसा य सदारमंतभेयं च / मोसोवएसणं कूड-लेहकरणं च निच्चं पि दुविहमदत्तादाणं, थूलं सुहुमं च तत्थ सुहुममिणं / तरुछायााणाई, थूलं निव-निग्गहाइकरं चोरोवणीयगहणं, तक्करजोगं विरुद्धरज्जगमं / कूडतुल-कूडमाणं, तप्पडिरूवं च अइयारा मेहुन्नं पि हु दुविहं, थूलं सुहुमं च सुहुममियमित्थ / इंदियविगारमित्तं, थूलं सव्वंगसंभोगो दुविहं तिविहेण 'दिव्वं, एगविहं तिविहं तिरियमेहुन्नं / माणुसस्स परदारं, वज्जिज्ज रमिज्ज व सदारे वज्जइ इत्तिरि-अप्परिग्गहियागमणं अणंगकीडं च / . परविवाहक्करणं, कामे तिव्वाभिलासमिह दुविहो परिग्गहो वि हु, थूलो सुहुमो य तत्थ परदव्वे। मुच्छामित्तं सुहुमो, थूला उ धणाइ नव भेओ . खित्ताइ हिरनाई धणाइ दुपयाइ कुप्पमाणकमो / जोयण-पयाण-बंधण-कारणभावेहि नो कुणइ उड्ढाहो-तिरियदिसि, चाउम्मासाइ कालमाणेण / गमण-परिमाण-करणं, गुणवयं होइ पढममिह वज्जइ इच्छाइक्कम-मुड्ढाहोतिरियदिसिपमाणगयं / तह चेव खित्तवुड्डिं, कहिं वि सइ अंतरद्धं च भोगोवभोगपरिमाण, करणमित्ता गुणव्वयं बीयं / तं भोयणओ तह, कम्मओ य दुविहं मुणेयव्वं भोयणओ पंडिवन्ने, इमम्मि वज्जिज्ज-गंतकायाई / पंचुंबरिं महुं मेरयं च रयणीइ भत्तं च // 422 // // 423 // // 424 // // 425 // // 426 // // 427 // . 201