________________ देसस्स य कालस्स य, निवस्स लोगस्स तह य धम्मस्स / वजंतो पडिकूलं, धम्मं सम्मं च लहइ नरो // 320 // एगस्स भूमिवइणो, नयरस्स व जो हविज्ज पडिबद्धो / भूभागो सो देसो, तस्स विरुद्धं तु पडिकूलं . // 321 // तं पुण नरेण जत्तेण, बुद्धिमंतेण नेव कायव्वं / गिहमित्तस्स वि कीरइ, न विरुद्धं किमुय देसस्स // 322 // न य अन्नदेसियाणं, पुरओ तद्देसखिसणं कुणइ / सव्वेसि पक्खवायाण, देसपक्खो जओ गरुओ // 323 // एवं देसविरुद्धं, कालविरुद्धं तु इह इमं नेयं / पत्थाण-मपत्थावे, जं कीरइ कीर नरेणेवं // 324 // हेमंते हिमगिरि-परिसरेसु गिम्हे मरुत्थलपहेसु। . वासासु अवर-दक्खिण-समुद्दपेरंतभागेसु / // 325 // अइदुब्भिक्खे नरनाह-विग्गहे मग्गरोह-कंतारे। . असहायस्स पओसे, पत्थाणमणत्थपत्थारी . // 326 // पुरिसो देसविरुद्धं, कालविरुद्धं च मुंणिय मुंचंतो। होइ पुरिसत्थभागी, अणत्थसत्थे य नित्थरइ // 327 // निवइ-विरुद्धं पुण निउण-बुद्धिणा नियमसो न कायव्वं / सामन्न-जण-विलक्खण-तेय-सिरी भासुरा जं ते // 328 // इयरो वि नरो न सहइ, अप्पम्मि विरुद्धमायरिजंतं। किं पुण लोउत्तरविरिय-दुद्धरा धरणिधायारो // 329 // संते वि निवइ-दोसे, न पयासइ कह वि कस्स वि समक्खं / अप्पे वि गुणे गुरु-गोरवेण सव्वत्थ पयडेइ // 330 // नरनाह-सम्मयाणं, सम्माणं कुणइ सुबहुबहुमाणं / तप्पडिकूलेहि समं, सम्मंतओ चयइ संगं पि // 331 // . 183