________________ // 308 // // 309 // // 310 // // 311 // // 312 // // 313 // बलिएहि दुब्बलजणो, सुल्ककराईहिं नाभिभवियव्यो / थेवावराहदोसे वि, दंडभूमिं न नेयव्वो कारणिएहि पि समं, कायव्वो ता न अत्थसंबंधो। किं पुण पहुणा सद्धि, अप्पहियं अहिलसंतेहि एयं परुप्परं नायराण, पयाण समुचियाचरणं / परतित्थियाण समुचिय-मह किं पि भणामि लेसेण कविभावो किर कव्वं, कवी य जिणदंसणी इहं ताव / तदविक्खाए तेणं, एए परतित्थिणो नेया ' सुगय-भयवंत-सइवा, पत्तेयं ताव चउ चउ पभेया। मीमंसगो दुभेओ, काविल-कोलायदंसणिणो एएसि तित्थियाणं, भिक्खट्ठमुवट्ठियाण नियगेहे। कायव्वमुचियं किच्चं, विसेसओ रायमहियाणं जइ वि न मणम्मि भत्ती, न पक्खवाओ य तग्गयगुणेसु / उचियं गिहागएसुं ति, तह वि धम्मो गिहीण इमो . गेहागयाणमुचियं, वसणावडियाण तह समुद्धरणे / दुहियाण दया एसो, सव्वेसिं सम्मओ धम्मो पिइमाईण समुचियं पउंजमाणा जहुत्तजुत्तीए। पुरिसाए संतवसणा, जिणधम्माहिगारिणो हुंति मुंचंति न मज्जायं, जलनिहिणो नाचला वि हु चलंति / न कया वि उत्तमनरा, उचियाचरणं विलंघंति तेणं चिय जयगुरुणो, तित्थयरा वि हु गिहत्थभावम्मि। अम्मापिऊणमुचियं, अब्भुट्ठाणाइ कुव्वंति उचियाचरणेण नरो, लद्धपसिद्धी वि नंदए न चिरं। देसाइविरुद्धाइं, अचयंतो ते तओ चयसु 12 // 314 / / // 315 // // 316 // // 317 // . // 318 // // 319 //