________________ // 272 // // 273 // // 274 // // 275 // // 276 // // 277 // पिउणो तणुसुस्सूसं, विणएणं किंकर व्व कुणइ सयं / वयणं पि से पडिच्छइ, वयणाओ अपडियं चेव चित्तं पि हु अणुयतइ, सव्वपयत्तेण सव्वकज्जेसु / उवजीवइ बुद्धिगुणे, नियसब्भावं पयासेइ . आपुच्छिउं पयट्टइ, करणिज्जेसुं निसेहिओ ठाइ। खलिए खरं पि भणिओ, विणीययं न हु विलंघेइ सविसेसं परिपूरइ, धम्माणुगए मणोरहे तस्स / एमाइ उचियकरणं, पिउणो जणणीइ वि तहेव नवरं से सविसेसं, पयडइ भावाणुवित्तिमप्पडिमं / इत्थीसहावसुलहं, पराभवं वहइ न हु जेण उचियं एवं तु सहोयरम्मि जं नियइ अप्पसममेयं / जिटुं व कणिटुं पि हु, बहुमन्नइ सव्वकज्जेसु दंसइ न पुढोभावं, सब्भावं कहइ पुच्छइ य तस्स / ववहारम्मि पयट्टइ, न निगृहइ थेवमवि दविणं अविणीयं अणुयत्तइ, मित्तेहितो रहो उवालभइ। सयणजणाओ सिक्खं, दावइ अन्नावएसेण हियए ससिणेहो वि हु, पयडइ कुवियं व तस्स अप्पाणं / पडिवन्नविणयमग्गं, आलवइ अछम्मपिम्मपरो तप्पणइणि-पुत्ताइसु, समदिट्ठी होइ दाण-सम्माणे / सावक्कम्मि उ इत्तो, सविसेसं कुणइ सव्वं पि इय भायगयं उचियं, पणइणिविसयं पि कं पि जंपेमो। सप्पणय-वयण-सम्माणणेण तं अभिमुहं कुणइ सुस्सूसाइ पयट्टइ, वत्थाभरणाइ समुचियं देइ / नाडय-पिच्छणयाइसु, जणसमुद्देसु वारेइ // 278 // // 279 // // 280 // // 281 // // 282 // // 283 // 189