________________ // 260 / / / 261 // // 262 // . // 263 / / // 264 // . // 265 // रूवं च वणसरूवं, दुजीहजीहाचलं जए जीयं / तडितरलमत्थजायं, उवयारु च्चिय थिरो एगो . कइवयदिणपाहुणएण, हंत देहेण देहिणो कह वि। उवयारधणं जइ अज्जिणंति नणु सासया हुंति कह तेसिं चेयणत्तं, उवयरिया उवयरंति जे अन्नं। निच्चियसचेयणा जे, अणुवकया उवयरंति परं समए समुन्नई पाविऊण; जलपडलममलमुझंतो। उवयरइ घणो लोयं, किमुवकयं तस्स लोएणं तुंगगिरिनिवडण-सिहरावयडोवलखलणनीयगामित्तं / अणुवकयाउ नइओ, सहति लोओवयारत्थं रविकरतावं पक्खीण, चंचुनहपहरपंयभरक्कमणं। . विसहति मग्गतरुणो, पहियाणमपरिचियाण कए भूमी वि वहइ भारं, जलणो वि हु ओसहीगणं पयइ। आसासइ पवणो वि हु, लोयं केणुवकयं तेसिं इय जइ अणुवकया वि हु, विसिट्ठचेयन्नसुन्नया वि इमे। किर उवयरंति ता जयह, दव्व-भावोवयारेसु जह ते मुणिंदनरनाह, नंदणा भाव-दव्व-उवयारं। काउं परुप्परं भव-दुहाण विवरंमुहा जाया उवयारपरो वि नरो, जो न मुणइ सम्ममुचियमायरिउं / सलहिज्जइ सो न जणे, ता मुणिऊणं कुणह उचियं सामन्ने मणुयत्ते, जं केई पाउणंति इह कित्ति / तं मुणह निव्वियप्पं, उचियाचरणस्स माहप्पं तं पुण पिइ-माइ-सहोयरेसु, पणइणि-अवच्च-सयणेसु / गुरुजण-नायर-परतित्थिएसु, पुरिसेण कायव्वं / 188 // 266 // // 267 // // 268 // // 269 // // 270 // // 271 //