________________ भणियं सुसावगोचिय, नियपुत्थयखित्तमह समासेण / जिणमंदिरखित्तं पि हु, सुयाणुसारेण साहेमि // 152 // सम्मत्तधरो सड्ढो, सविसेसं बोहिसोहणसयन्हो। कारेइ ज़िणाययणं, निइविड्ढत्तेण वित्तेण // 153 // अहिगारी जं एसो, दोसो पुण अणहिगारिणो नियमा / आणाभंगाईओ दुरंतभवभमणपेरंतो // 154 // नणु जिणभवणाणमिहं, महयारंभेण होइ निम्माणं / आरंभे कह णु दया ?, जिणधम्मो पुण दयामूलो // 155 // सच्चं होइ विमद्दो, पुढवाईणं धुवो समारंभे / किंतु बुहा गुरुलाभे, कज्जे सज्जंति जं भणियं // 156 // कुणइ वयं धणहेडं, धणस्स वणिउ वि आगमं नाउं। इय संजमस्स वि वउ, तस्सेवट्ठा न दोसाय // 157 // संतम्मि जिणाययणे, वंदणवडिया मुणीण धम्मक्रहा / मद्दगबोही-सम्मत्तसुद्धि-विरईदुगाइगुणा . // 158 // इक्कस्स वि ताव जियस्स, भवदुहाओ विमोयणं धम्मो। किं पुण तत्तियमित्ताण, भव्वजीवाण जं भणियं // 159 // "सयलम्मि वि जियलोए, तेण इहं घोसिओ अमाघाओ। इक्कं पि जो दुहत्तं, सत्तं बोहेइ जिणवयणे // 160 // ता भावुवयारकर, सिरिभरहाइहिं सयमिहाइन्नं / विहिणा कारवणं, चेइयाण सिवकारणं बिति // 161 // उद्धरणं पुण जिन्नाण, जिणहरणं विसेसओ होइ। इह-परलोय-सुहयरं, जह वग्गुरसड्ढिणो तस्स // 162 / / निम्मविए जिणभवणे, जिणबिंबं तत्थ ठावए मइमं / / आणंद-संदिरच्छाहत्थं, पिच्छंति जं भव्वा // 163 // 179