________________ // 116 // // 117 // // 118 // // 119 // // 120 // // 121 // तुरियं तु भत्तिदाणं, तं पुण पत्तेसु चेव दिज्जंतं। होइ सिवसुक्खफलयं, पत्ताणि य सत्तखित्ताणि - चाउव्वन्नो संघो, जिणागमो जिणहरं च जिणबिंबं / एएसु वित्तबीयं, नियं कुडुंबीहिं वुत्तव्वं समणा समणीओ य, सावया साविया तहा। एसो चउव्विहो संघो, विग्घसंघविघायणो तत्थ य जिणिंदसमणा-भयवंतो जइ वि हुंति निग्गंथा। तह वि वयकायरक्खा-निमित्तमरिहंति दाणमिणं फासुयएसणियाई, अहाकडाइं च भत्तपाणाणि / . तह वत्थपत्तकंबल-सिज्जासंथारपमुहाई ओसहभेसज्जाइं, तह पवयणवुड्ढिहेउंभूयाई / सचित्ताईं पि अवच्च-सयणपभिईणि अणवरयं भत्तीइ देइ साहूण, सुद्धलेसुल्लसंतरोमंचो। उस्सग्गेणं सड्ढो, अववायपयम्मि पुण एवं दुभिक्खे डमर-विड्डर-रोहग-कंतार-देह-गेलने / . समुवट्ठियम्मि गीओ, आभोयइ सपरगेहेसु जइजणपाउग्गाई, जहुत्तपुव्वुत्तवत्थुजायाणि / दुलहेसु परिहरंतो, तरतमभावेण गुरूदोसे गिण्हेइ पयणुदोसे, तेसि पि हु असइ अह मिगविउत्ते / सुविचित्तम्मि पएसे, जहोचियं कुणइ जं भणियं फासुयएसणिएहि, फासुय उहासिएहिं कीएहि / पूईकम्मेण तहा, अहाकम्मेण जयणाए इय समणाणं दाणं, समणीण वि एवमेव सव्वं पि। गीयत्थजणणिभइणीपणइणिपभिईहिं दावेइ // 122 // // 123 // // 124 // // 125 // // 126 // // 127 // 106