________________ // 69 // // 70 // // 71 // : // 72 // // 73 // दीणाण अणाहाण य बंधवरहियाण वाहिविहुराण / चारयपडियाण विएसियाण वसणावलीढाणं / अंधाण य पंगूण य, कुणीमखुज्जाण वामणाणं च / बालाण य वुड्ढाण य, छुहियाण पिवासियाणं च एवंविहाण पाणीण, दिति करुणामहन्नवा जमिह / तं अणुकंपादाणं, भन्नइ सन्नाणसालीहिं संते वि चित्तवित्ते, दिढे सत्ते वि तिक्खदुक्खत्ते / अणुकंपा जइ चित्ते, न हुज्ज भंति व्व भव्वत्तें भाविज्जइ भव्वत्तं, पाणिदया पाउणेइ परभागं / सम्मत्तं च विसुज्झइ, अणुकंपाए वियरणेणं पाणीण पाणसंरक्खणाय, पाणे वि नंणु पणामति / इह केई सत्तधणा, का गणणा बज्झवत्थूणं' रिद्धीओ विउलाओ, अभंगुरं भूरिभोगसामग्गी / जे भुंजंति नरा तं, अणुकंपादाणमाहप्पं जह तेण सिट्ठिसागरदत्तस्स सुएण सोमदत्तेण। . अणुकंपादाणाओ, पत्ता भोगा इहेव भवे अणुकंपादाणमिणं, भणियं लेसेण संपयं किं पि। नाणविसयं पि भणिमो, जिणगणहरभणियनाएण नजंति जेण तत्ता, जीवाजीवाइणो जिणवरुत्ता। तं इह भन्नइ नाणं, तस्स य भेया इमे पंच पढमं किर मइनाणं, बीयं सुयमवहिनाणमह तइयं / मणपज्जवं चउत्थं, पंचमयं केवलं नाणं मिज्जइ नज्जइ जेण, सद्दो अत्थो य उग्गहाईहिं। तं वट्टमाणविसयं, मइनाणं भन्नए तेसु __ 102 // 74 // // 75 // // 76 // // 77 // // 78 // // 79 //