________________ // 56 // // 57 // // 58 // // 59 // // 60 // // 61 // निहणंतो पाणिगणं, पावठाणं न कि समारभइ ? / रखंतो पुण तं चिय, पुन्नट्ठाणं न किं जीवो? एवं पि ताव कटुं, पावंति मुणतया वि जं केई। वसणगणतप्पणट्ठा, पाणिवहे संपयट्टंति / एयं पुण कट्ठयरं, सकं सोउं पि कह सयन्नेहि / जं केइ पाणिघायं, करंति किर धम्मबुद्धीए किं तित्थसत्थपरिसीलणेहिं, किं होमसोमपाणेहि / पिक्खह अप्पं व जिए, रक्खह दुक्खाउ अप्पाणं जं कि पि सुहं लोए, तं जाणह पाणिरक्षणमुत्थं / जं च दुहं तं सव्वं, घोराओ पाणिघायाओ करचरणनयणसवणुट्ठघाणवियलाविलीणलावन्ना / जं उप्पज्जंति नरा, तं पाणिवहस्स फलमसुहं अच्चंतनिरणुकंपा, काऊणं पाणिघायणं घोरं / . जायंति मियापुत्त व्व भायणं तिक्खदुक्खाणं तेयस्सिणो सुरूवा, दीहाऊ पबलभुयबलसमेया। जं हुंति नरा तं पुण, मुण जीवदयाइ माहप्पं चिंतामणि-कामगवी-सुरतरुणो समुइया न तं दिति। जं इक्क चिय वियरइ, जीवदया सेविया सम्म धन्ना गहिऊण इमं, गुरुमूले मलकलंकपरिमुकं / पालंति पाउणंति य, फलममलमिमीइ अचिरेण जह तेण पुलिदेणं, मुणिवयणसमिद्धसुद्धसद्देणं / पडिवन्ना जीवदया, बीयभवे फलवई जाया इय भणियमभयदाणं, भव्वाण नराण सिवसुहनियाणं / अणुकंपादाणं पुण, भणामि दुक्खत्तसत्तेसु 101 // 62 // // 63 // / / 64 // // 65 // // 66 // // 67 //