________________ विनयो दीनातरक्षणं प्रतिपन्नदृढिमाऽर्यपूजनम् / सत्यं च परोपकारिता धर्मः क्षत्रकुलेषु शस्यते // 3200 // यमनियमरतिर्वेदाद्यभ्यासो ब्रह्म मैत्र्यमुपकारः। स्फुटशुद्धधर्मकथनं धर्मः क्षेमाय विप्राणाम् // 201 // वेदादिशास्त्रार्थपरिश्रमः क्षमा, दयादमौ ब्रह्मगुणक्रियादृतिः / वृत्तिविशुद्धा च परोपकारिता, धर्मो ह्ययं विप्रकुले जयंश्रिये 3202 (अष्टमोऽश:) जयसिरिधिइमइकंतीसिद्धीओ जस्स पयपसाएण। विलसंति सेवएसुं तं जिणकप्पद्रुमं भयह // 3 / 203 // वंछिअ सुहाई विअरइ धम्मो जणउ व्व सव्वजंतुणं / जणओ तस्स जिणिंदो जयइ जगपिआमहो स तओ // 3 / 204 // पत्तम्मि जस्स धम्मो होइ सिवं निच्छियं न य अपत्ते / अणुसंगिअं भवसुहं जिणरायं भयह तं भविआ .. // 3 / 205 / / इक्को वि जम्मि भेओ सव्विच्छिअसुहफलाणि विअरेइ / सुरतरुवणं व धम्मो जेणुत्तो सोऽरिहा पुज्जो // 3 / 206 / / सव्वसुहं धम्मफलं धम्मो सुद्धागमा स जिणमूलो। इहपरलोइअसिवसुहाभिलासिणा ता जिणो पुज्जो // 3 / 207 // सुरअसुरवाणमंतरजोइसखयराइणो जमच्चंति / सासयजिणभवणेसुं संअत्थं तं जिणं भयहा // 3 / 208 // सारं नरे तिवग्गो तत्थ वि धम्मो तहिं पि जिणभणिओ। . तत्थ वि पण परमिट्ठी तेसु जिणो तं भयह तेण // 3 / 209 // कप्पडुमम्मि तरुणो मणिणो चिंतामणिम्मि जह सव्वे / / जिणभत्तीए धम्मा तप्फलदाण तहा सव्वे // 3 / 210 // 160