________________ (सप्तमोऽशः) पितेव यः पालयति प्रजा नयैः, प्रवर्तयन् धर्मपथे निजे निजे / बुधान् यतीन् दर्शनिनश्च मानयन् नृपश्चिरं नन्दति संपदां पदम् // 3 // 169 / / प्रजासु वृद्धिप ! राज्यवृद्धये, प्रजासु धर्मो दुरितापहः प्रभो / प्रजासु नीतिर्नुप ! धर्मकीर्तिकृत्, नृपाय तुष्यन्ति सुराः प्रजोत्सवैः प्रगल्भते यस्य खलो न राज्ये, सतां महत्त्वं गुरुदेवपूजा / धर्मेष्वविघ्नोऽनघशास्त्रपाठः, सखेति तं रक्षति भूपमिन्द्रः।। 3 / 171 / / विमुच्य राज्याद्यखिलं विनश्वरं, कृतैर्महारम्भमयैः स्वकर्मभिः / मृत्यौ पतन्तं नरकावटेऽजितो, नृपं नयो धर्मयुतः समुद्धरेत्।। 3 / 172 // प्रजा रक्षेन्नृपो यत्नात् ता हि कोशोऽस्य जङ्गमः / मानयेद् धार्मिकान् साधूंस्तदाशीभिः स नन्दति . // 3 / 173 // न्यायधर्मयशसां चयमर्जन्, स्वप्रजाश्च सुखयन् सदुपायैः। मानयन् यतितपस्विबुधादीन, पुण्यकर्मभिरुदेति नरेन्द्रः // 3 / 174 // राज्ञा नाष्टविधेयान्यष्टविधेयानि चाष्ट्रहेयानि / धार्याणि चाष्ट हृदये विश्वसितव्यं न चाष्टभ्यः // 3175 // खलसङ्गः 1 कुकलत्रं 2 क्रोधो 3 व्यसनं 4 मदः 5 कुनयलक्ष्मी:६। असदाग्रह 7 श्च जडिमे ८.त्यष्ट न कार्याणि भूपेन // 3 // 176 // कीर्तिः 1 सुगुणौचित्यं 2 कौशल्यं 3 सत्कलासु सन्मित्रम् 4 / दाक्षिण्यं 5 दीनदयोद्यमो 7 दम 8 श्चाष्ट कार्याणि // 3177 // निर्लज्जत्व 1 मविनयः 2 कुशीलता 3 निष्ठुरत्वम 4 पि माया 5 / अनयो 6 ऽप्ययशो 7 ऽसत्यं 8 हेयान्यष्टौ नृपेणैवम् // 3178 // उपकारः प्रतिपन्नं 2 सुभाषितं 3 सर्वमर्म 4 वरविद्या 5 / . देवो६ गुरु 7 श्च धर्मो 8 राज्ञा धार्याणि हृद्यष्टो // 3 // 179 // 157