________________ // 72 // // 73 // // 74 // // 75 // // 76 // // 77 // सुठ्ठ वि उज्जव(म)माणं, पंचेव करिति रित्तयं समणं / अप्पथुई परनिंदा, जिब्भोवत्था कसाया य परपरिवायमईओ, दूसइ वयणेहिं जेहिं जेहिं परं / ते ते पावइ दोसे, परपरिवाई इअ अपिच्छो थद्धा छिद्दप्पेही, अवण्णवाई सयंमई चवला / वंका कोहणसीला, सीसा उव्वेअगा गुरुणो जस्स गुरुम्मि न भत्ती, न य बहुमाणो न गउरवं न भयं / नवि लज्जा न वि नेहो, गुरुकुलवासेण किं तस्स? रूसइ चोइज्जतो, वहई हियएण अणुसयं भणिओ। न य कहिँ करणिज्जे, गुरुस्स आलो न सो सीसो उव्विल्लणसूअणपरिभवेहिं अइभणियदुट्ठभणिएहि / सत्ताहिया सुविहिया, न चेव भिंदंति मुहरागं माणंसिणो वि अवमाणवेचणा ते परस्स न करंति / सुहदुक्खुग्गिरणत्थं, साहू उअहि व्व गंभीरा मउआ निहुअसहावा, हासदवविवज्जिया विगहमुक्का / असमंजसमइबहुअं, न भणंति अपुच्छिआ साहू महुरं निउणं थोवं, कज्जावडिअं अगव्वियमतुच्छं। पुट्विं मइसंकलियं, भणंति जं. धम्मसंजुत्तं सद्धिं वाससहस्सा, तिसत्तखुत्तोदयेण धोएण! ' अणुचिण्णं तामलिणा अन्नाणतवु त्ति अप्पफलो छज्जीवकायवहगा, हिंसकसत्थाइँ उवइसंति पुणो। सुबहुं पि तवकिलेसो, बालतवस्सीण अप्पफलो परियच्छंति अ सव्वं, जहट्ठियं अवितहं असंदिद्धं / तो जिणवयणविहिन्नू सहति बहुअस्स बहुआई // 78 // // 79 // // 80 // // 81 // // 82 // // 83 //