________________ // 60 // // 61 // // 62 // // 63 // // 64 // // 65 // विसयासिपंजम्मि व, लोए असिपंजरम्मि तिक्खम्मि। सिंहा व पंजरगया, वसंति तवपंजरे साहू जो कुणइ अप्पमाणं, गुरुवयणं न य लएइ उवएसं। सो पच्छा तह सोअइ, उवकोसाघरे जह तवस्सी जिट्ठव्वयपव्वयभरसमुव्वहणववसिअस्स अच्चंतं / जुवइजणसंवइयरे, जइत्तणं उभयओ भटुं / जइ ठाणी जइ मोणी, जइ मुंडी वक्कली तवस्सी वा / पत्थन्तो अ अबंभं, बंभा वि न रोयए मज्झं तो पढियं तो गुणियं, तो मुणियं तो अ चेइओ अप्पा। आवडियपेल्लियामंतिओ वि जइ न कुणइ अकज्जं पागडियसव्वसल्लो, गुरुपायमूलम्मि लहइ साहुपयं। अविसुद्धस्स न वड्डइ, गुणसेढी तत्तिया ठाइ जइ दुक्करदुक्करकारउ त्ति भणिओ जहट्ठिओ साहू। तो कीस अज्जसंभूअविजयसीसेहिं न वि खमिअं? जइ ताव सव्वओ सुंदरु त्ति कम्माण उवसमेण जई। धम्मं वियाणमाणो, इयरो कि मच्छरं वहइ ? अइसुट्ठिओ त्ति गुणसमुइओ त्ति जो न सहइ जइपसंसं / सो परिहाइ परभवे, जहा महापीढपीढरिसी परपरिवायं गिण्हइ, अट्ठमयविरल्लणे सया रमइ / डज्झइ य परसिरीए, सकसाओ दुक्खिओ निच्चं विग्गहविवायरुइणो, कुलगणसंघेण बाहिरकयस्स। नत्थि किर देवलोए वि देवसमिईसु अवगासो जइ ता जणसंववहारवज्जियमकज्जमायरइ अन्नों। जो तं पुणो विकत्थइ, परस्स वसणेण सो दुहिओ - // 66 // // 67 // // 68 // // 69 // . // 70 // // 71 //