________________ पराणि रत्नानि 1 सुरालिसेव्यता 2 बलं तनौ 3 सन्निधयः 4 सदाऽनुगाः स्त्रियोऽपि रूपप्रहताप्सर:श्रियो 5 जिनोक्तपुण्यैर्विलसन्ति चक्रिणाम् जगत्त्रयानन्दकरी जनि 1 मरुनगेऽभिषेकादिविधिः 2 सुधाशनम् 3 / अनुत्तरौजः 4 सुभगत्वसंपदो 5 ऽखिलास्ववस्थासु सुरेश्वरार्चना 63 / 29 तद्देशनासद्म 7 गुणोत्तरा गिरः 8 सत्प्रातिहार्यातिशयर्द्धयोऽद्भुताः 9 / चिदाद्यनन्तत्व 10 मशेषविष्टपोपकारितादीनि 11 च पुण्यतोऽर्हताम् प्रभुत्वमसहायस्य 1 श्रियश्चाव्यवसायिनः 2 / निस्त्राणस्यापि यद् रक्षा 3 धर्मस्तेनावबुध्यताम् // 3 // 31 // जनिःकृतार्था 1 पितृमातृपालनादिक:प्रयास:सफलः 2 श्रियेऽभिधा 3 प्रशस्यते दर्शनमप्यमुष्य 4 मतिर्निविष्टा जिनधर्मकर्मसु // 3 // 32 // यस्यैकैकोऽपि भेदस्त्रिदशतरुवनस्येव शाखी समग्रा- .. भीष्टार्थानां प्रदाता 1 फलमनुपमितं मोक्षसौख्यं तु मुख्यं 2 / चक्रित्वादिप्रसंगागतमथ विविधाः संपदश्चैहिकं 3 च श्रीमानुद्यज्जयश्रीः स जयति भगवद्भाषितः कोऽपि धर्मः // 3 // 33 // (द्वितीयोऽशः) स्पृहयालुतया सुखश्रियाः भविनां स्युः सकला: प्रवृत्तयः / परमेतरभेदतो द्विधा, सुखमाद्यं पुनरक्षराश्रितम् // 3 // 34 // तदनंतममिश्रमव्ययं, निरुपाधि व्यपदेशवर्जितम्।। परिचिन्तितसुन्दरस्फुरद्विषयाद्यौपायिकोद्भवं परम् // 3 // 35 // अधिगत्य जिनेन्द्रशासनं, प्रथमे स्युः कृतिनः स्पृहाभृतः।। अविशिष्टधियः परे पुनर्जिनधर्माच्च लाभो द्वयोरपि // 3 // 36 // तदयं परमांगसाधनं प्रविधेयो विधिवत् सदा नरैः। * न सदौपयिकं विना जनैर्यदुपेयं परमप्यवाप्यते // 3 // 37 // 144