________________ तिव्वा रोगायंका सहिया जह चक्किणा चउत्थेणं। तह जीव ! ते तुमं पि हु सहसु सुहं लहसि जमणंतं . // 519 // . जे केइ जए ठाणा उईरणाकारणं कसायाणं / ते सयमवि वज्जता सुहिणो धीरा चरंति महिं // 520 // हियनिस्सेयसकरणं कल्लाणसुहावहं भवतरंडं। सेवंति गुरुं धन्ना इच्छंता नाणचरणाई // 521 // मुहकडुयाइं अंतेसुहाई गुरुभासियाई सीसेहि। सहियव्वाइं सया वि हु आयहियं मग्गमाणेहिं // 522 // . इय भाविऊण विणयं कुणंति इह परभवे य सुहजणयं / जेण कएणऽन्नो वि हु भूसिज्जइ गुणगणो सयलो // 523 // एवं कए य पुव्वुत्तझाणजलणेण कम्मवणगहणं / दहिऊण जंति सिद्धि अजरं अमरं अणंतसुहं // 524 // हेमंत-मयण-चंदण-दणुसूरिणामाइवन्ननामेहिं / सिरिअभयसूरिसीसेहिं रइयं भवभावणं एवं जो पढइ सुत्तओ सुणइ अत्थओ भावए य अणुसमयं / सो भवनिव्वेयगओ पडिवज्जइ परमपयमग्गं // 526 // न य बाहिज्जइ हरिसेहिं नेय विसमावईविसाएहि / भावियचित्तो एयाए चिट्ठए अमियसित्तो व्व // 527 // उवयारो य इमीए संसारासुइकिमीण जंतूणं / जायइ न अहव सव्वण्णुणो वि को तेसु अवयासो? // 528 // तो अणभिनिविट्ठाणं अत्थीणं किं पि भावियमईणं / जंतूण पगरणमिणं जायइ भवजलहिबोहित्थं // 529 // एगतीसाहियपंचहिं सएहिं गाहाहिं विचित्तरयणेहि। . सुत्ताणुगया वररयणमालिया निम्मिया एसा . // 530 // . // 525 / / 132