________________ // 507 // // 508 // // 509 // // 510 / / // 511 // // 512 // जेसिं च फुरइ नाणं ममत्तनेहाणुबंधभावेहि / वाहिज्जंति न कहमवि मणम्मि एवं विभावेंता जर मरणसमं न भयं न दुहं नरगाइजम्मओ अन्नं / तो जम्ममरणजर मूलकारणं छिंदसु ममत्तं जावइयं किं पि दुहं सारीरं माणसं च संसारे। पत्तं अणंतसोविहु विहवाइममत्तदोसेणं कुणसि ममत्तं धणसयणविहवपमुहेसुऽणंतदुक्खेसु / सिढिलेसि आयरं पुण अणंतसोक्खम्मि मोक्खम्मि संसारो दुहहेऊ दुक्खफलो दुसहदुक्खरूवो य / नेहनियलेहिं बद्धा न चयंति तहा वि तं जीवा जह न तरइ आरुहिउं पंके खुत्तो करी थलं कह वि। तह नेहपंकखुत्तो जीवो नारुहइ धम्मथलं छिज्जं सोसं मलणं बंधणं निप्पीलणं च लोयम्मि। जीवा तिला य पेच्छह पार्वति सिणेहसंबद्धा दुरुज्झियमज्जाया धम्मविरुद्धं च जणविरुद्धं च। किमकज्जं तं जीवा न कुणंति सिणेहपडिबद्धा? थोवो वि जाव नेहो जीवाणं ताव निव्वुई कत्तो? / नेहक्खयम्मि पावइ पेच्छ पईवो वि निव्वाणं इय धीराण ममत्तं नेहो य नियत्तए सुयाईसु / रोगाइआवईसु. य इय भावंताण न वि मोहो नरयतिरिएसु गयाइं पलिओवमसागराइंऽणंताई / किं पुणं सुहावसाणं तुच्छमिणं माणसं दुक्खं ? सकयाइं च दुहाइं सहसु उइन्नाइं निययसमयम्मि। न हु जीवो वि अजीवो कयपुव्वो वेयणाईहिं // 513 // // 514 // // 515 // // 516 // // 517 // // 518 // 131