________________ भुवणम्मि जाव वियरइ जिणधम्मो ताव भव्वजीवाणं / भवभावणवररंयणावलीइ कीरउ अलंकारो // 531 // श्रीमुनिसुन्दरसूरिकृतः // उपदेशरत्नाकरः॥ (प्रथमतटे, प्रथमोऽशः) जयसिरिवंछिअसुहए अणिट्ठहरणे तिवग्गसारम्मि। इहपरलोगहिअत्थं सम्मं धम्मम्मि उज्जमह // 11 // जुग्गेहिं जुग्गपासे सो पुण जुग्गो गहिज्जए विहिणा। संपुण्णसुहफलो जं एवं चिय अन्नहा इहरा (इयरं) // 12 // रत्तो 1 दुट्ठो 2 मूढो 3 पुव्विं वुग्गाहिओ 4 अ चत्तारि / उवएसस्स अणरिहा अहवाऽइसएहि बुझंति // 13 // अणवडिओ 1 पमत्तो 2 बहिरकुटुंबोवमो 3 अ कुग्गहवं 4 / पामरसम 5 सुअमित्तग्गाही 6 धम्मं न साहति // 14 // गिरिसिर 1 पणाल 2 मरुथल 3 कसिणावणि 4 जलहिसुत्ति 5 मणिखाणी 6 धम्मोवएसवासे, फलजणणे जीवदिटुंता // 15 // सुहअसुहदव्ववासिअ वम्माऽवम्मा अ (वा) वासिआ य घडा। सुहअसुहधम्मवासं पडुच्च जीवाण दिटुंता // 16 // जह वरजलभरिअसरे वायस 1 साणे 2, भ 3 हंस 4 माईणं / चाय 1 लिहणा 2 सिअय 3 रई 5 सुगुरुवएसे तह जिआण।। 17 / / सप्प १जलूगा 2 वंझा 3 ऽवंझगवी 4 संनिहा चउह जीवा / परिणमइ जेसु सव्वं विस 1 तारिस 2 नास 3 पय 4 रूवं // 18 // जिण्णाजिण्णजराइसु होइ जहा इक्कमेव गोखीरं / गुणदोसुववत्तिकर, सुहगुरुवयणं तह जिएसु // 19 // 133