________________ खित्ताईणि वि एवं दुलहाई वण्णियाइं समयम्मि / ताई पि हु लक्ष्णं पमाइयं जेण जिणधम्मे // 471 // सो झूरइ मच्चुजरावाहिमहापावसिन्नपडिरुद्धो। तायारमपिच्छंतो नियकम्मविडंबिओ जीवो // 472 // आलस्स मोहऽवन्ना भा कोहा पमाय किविणत्ता। भय सोगा अन्नाणा वक्खेव कुऊहला रमणा // 473 // एएहि कारणेहिं लघूण सुदुल्लहं पि मणुयत्तं / न लहइ सुई हियकरि संसारुत्तारणिं जीवो // 474 // दुलहो च्चिय जिणधम्मो पत्ते मणुयत्तणाइभावे वि। कुपहबहुयत्तणेणं विसयसुहाणं च लोहेणं // 475 // जस्स बहिं बहुयजणो लद्धो न तए वि जो बहुं कालं / लद्धम्मि जीव ! तम्मि वि जिणधम्मे किं पमाएसि? // 476 / / उवलद्धो जिणधम्मो न य अणुचिन्नो पमायदोसेणं / हा जीव ! अप्पवेरिअ ! सुबहुं पुरओ विसूरिहिसि // 477 // दुलहो पुणरवि धम्मो तुमं पमायाउरो सुहेसी य। दुसहं च नरयदुक्खं कि होहिसि ? तं न याणामो // 478 // लद्धम्मि वि जिणधम्मे जेहिं पमाओ कओ सुहेसीहिं। पत्तो वि हु पडिपुनो रयणनिही हारिओ तेहिं // 479 // जस्स य कुसुमुग्गमु च्चिय सुरनररिद्धी फलं तु सिद्धिसुहं / तं चिय जिणधम्मतरुं सिंचसु सुहभावसलिलेहिं जिणधम्म कुव्वंतो जं मनसि दुक्करं अणुट्ठाणं / तं ओसहं व परिणामसुंदरं मुणसु सुहहेडं // 481 // इच्छंतो रिद्धीओ धम्मफलाओ वि कुणसि पावाई। कवलेसि कालकूडं मूढो चिरजीवियत्थी वि // 482 // 128 // 480 //