________________ श्रीहीरहीरविजयव्रतीराजपट्टपद्मांशुमद्विजयसेनमुनीन्द्रराज्ये / श्रीस्तम्भतीर्थनगरे रस-बाण-भूप (1656) वर्षे समाप्तिमगमत् शतकं सदर्थम् // 105 // // 1 // - // 2 // . // 3 // श्रीमद्धर्मसागरगणिविरचितम् ॥सर्वज्ञशतकम् // पणमिय सिरिवीरजिणं छउमत्थजिणाणमंतरं सम्म / जिणवरुवएसविसयं, तहेव अणुमोअणं वुच्छं छउमत्थो छउमत्थं जाणइ पाणाइवायपमुहेहिं / लिंगेहिं जेहिं सत्तहि, ताई ठाणंगभणिआई पंचमहव्वयतिक्कमववायणाभोगरूवरूवाणं / सत्तण्हं खलु सत्तं पि मोहसत्ताविणाभूअं विसयाणाभोगेणं तेर्सि पडिसेवणा सुसाहूणं / / सुत्ताणाए चरणं सुद्धं इहरा उ विवरीअं तेसिं लिंगाणं पुण कारणमिह मोहणिज्जकम्मंसे / तप्परिणई वि दुविहा पत्तेअं दव्वभावेहिं दव्वेण य परिणामो सत्ताए मोहणिज्जकम्मस्स / भावेण य परिणामो उदएणं होइ तस्सेव छउमत्थणाणहेऊ लिंगाई दव्वओ ण भावाओ। उवसंतवीअरागं जा तावं ताणि जाणाहि छउमत्थो पुण केवलिकप्पो अप्पमत्तसंजओ णेओ। . सोविह संजमजोगे उवउत्तो सुत्तआणाए 41 // 4 // // 7 // // 8 //