________________ विशीर्यन्ते कदर्यस्य श्रियः पातालपत्रिमाः / अगाधमन्धकूपस्य पश्य शैवलितं पयः // 96 // // 97 // // 98 // परे पाण्डुरितं हन्तुम् ......... मूर्खस्य मुखमीक्षन्ते क्वापि कार्ये विचक्षणाः / विना निकषपाषाणं को वेत्ति स्वर्णवणिकाम् विभवे विभवभ्रंशे सैव मुद्रा महात्मनाम् / अब्धौ सुरात्तसारेऽपि न मर्यादाविपर्ययः सेवितोऽपि चिरं स्वामी विना भाग्यं न तुष्यति / भानोराजन्मभक्तोऽपि पश्य निश्चरणोऽरुणः // 99 // .. // 100 // 204