________________ // 72 // // 73 // कठोरमपि सौख्याय प्रस्तावोच्चरितं वचः / याने वामखरारावः शिवायारतिकार्यपि सदा सौख्यकरं क्वापि माधुर्यमपि वय॑ते / अरतिं कुरुते वीणा रणरङ्गाङ्गणे न किम् विना भाग्यं वरं वस्तु वृद्धत्वे नोपलभ्यते / अब्धिमन्थोत्थरत्नेषु भिक्षैवासीत् पितामहे .. प्रायः श्रिया वृतं वस्तु लभते भुवि गौरवम् / श्रीवृक्षपर्णमालेव तोरणे मङ्गलप्रदा .. प्रायः पुसां धनोन्मानात् हृदयोष्मा प्रवर्तते / / धूमरेखाप्रस्तर: स्यात् वरिन्धनमानतः साकारोऽपि सुवृत्तोऽपि निर्द्रव्यः कापि नार्घति / व्यक्ताक्षरः सुवृत्तोऽपि द्रम्मः कूट विवर्यते इन्दिरानादृते यान्ति विदा एव कलङ्कताम् / अश्रीदृष्टो भवेद् द्रम्मः साक्षरो बाह्यटङ्कितः // 75 // // 76 // // 77 // // 78 // समाश्रयन्ति सर्वेऽपि ................. // 79 // अत्यासक्तस्य मूर्धानमधि ....... // 80 // // 81 // // 82 // सदोषपत्यसंयोगे मोदते .......... सदा सर्वस्वदा शक्ता स्थानस्थेऽपि प्रिये प्रिया / . किं न प्रावृषि वृक्षस्थं बकी भोजयते बकम् बाह्यानुरागिणां रागो नाम चापदि नश्यति / मुशलो(ले) खण्डनाच्छालिरामशालित्वमुज्झति 202 // 83 //