________________ // 96 // // 97 // / / 98 // // 99 // // 100 // // 101 // हतभी: स्वय मेध्याशु शं ते दातः श्रिया तनु / नुतया श्रित दान्तेश शुद्ध्यामेय स्वभीत ह . मानोनानामनूनानां मुनीनां मानिनामिनम् / मनूनामनुनौमीम नेमिनामानमानमन् तनुतात्सद्यशोमेय शमेवार्य्यवरो गुरु / रुगुरो वर्दी वामेश यमेशोद्यत्सतानुत जयतस्तव पार्श्वस्य श्रीमद्भर्तुः पदद्वयम् / क्षयं दुस्तरपापस्य क्षमं कर्तुं ददज्जयम् तमोत्तु ममतातीत ममोत्तममतामृत / ततामितमते तातमतातीतमृतेमित स्वचित्तपटयालिख्य जिनं चारु भजत्ययम् / शुचिरूपतया मुख्यमिनं पुरुनिजश्रियम् धीमत्सुवन्द्यमान्याय कामोद्वामितवित्तृषे / श्रीमते वर्धमानाय नमो नमितविद्विषे वामदेव क्षमाजेय धामोद्यमितविज्जुषे / श्रीमते वर्धमानाय नमोन मितविद्विषे समस्तवस्तुमानाय तमोघ्नेऽमितवित्विषे। श्रीमते वर्धमानाय नमोन मितविद्विषे प्रज्ञायां तन्वृतं गत्वा स्वालोकं गोविदास्यते / यज्ज्ञानान्तर्गतं भूत्वा त्रैलोक्यं गोष्पदायते को विदो भवतोपीड्यः सुरानतनुतान्तरम् / शं सते साध्वसंसारं स्वमुद्यच्छन्नपीडितम् कोविदो भवतोपीड्यः सुरानत नुतान्तरम् / शंसते साध्वसं सारं स्वमुद्यच्छन्नपीडितम् // 102 // // 103 // // 104 // // 105 // // 106 // // 107 //