________________ // 12 // // 13 // // 14 // // 15 // // 16 // // 17 // मोह तिमिर मनमें जगिं (गे), याके उदय अछेह / अंधकार परिनाम है, श्रुतके नामे तेह करे मूढमति पुरुषकुं; श्रुत भी मद भय रोष / ज्यु रोगीकुं खीर घृत, संनिपातको पोष टले दाह तृषा हरे, गाले ममता पंक। लहरी भाव विरागकी, ताको भजो निसंक कागभुजंगम विष हरन, धारो मंत्र विवेक / भववन मूल उछेदकुं, विलसे याकी टेक रवि दूजो तीजो. नयन, अंतर भाव प्रकास / करो धंध सवि परिहरी, एक विवेक अभ्यास प्रशम पुष्करावर्तके, वरसत हरष विशाल / द्वेष हुताश बुझाइ, चिंता जाल जयल . किनके वश भववासना, होवै वेशा धूत / मुनि भी जिनके बश भये, हावि भावि अवधूत जबलुं भवकी वासना, जागे मोह निदान / तबलुं रुचे न लोककुं, निरमम भाव प्रधान विषम ताप भववासना, त्रिविध दोषको जोरं / प्रगटे याकी प्रबलता, क्वाथ कषाए घोर तातें दुष्ट कषाय के, छेद हेत निज चित्त / .. धरो अह शुभवासना, सहज भावमें मित्त सिद्ध औषधि इक खिमा, ताको करो प्रयोग / ज्यु मिटि जाये मोह घर, विषम क्रोध ज्वर रोग चेतन को कोमल ललित, चिदानंदमय देह / सूक भूक जुर जात है, क्रोध लकति तेह ૧પ૯ // 18 // // 19 // // 20 // // 21 // // 22 // // 23 //