________________ // 72 // // 73 // // 74 // // 75 // // 76 // // 77 // समस्तपतिभावस्ते समस्तपति तद्विषः / संगतोहीन भावेन संगतो हि न भास्वतः नयसत्त्वर्त्तवः सर्वे गव्यन्ये चाप्यसंगताः / श्रियस्ते त्वयुवन् सर्वे दिव्या चावसंभृताः तावदास्स्व त्वमारूढो भूरिभूतिपरम्परः / केवलं स्वयमारूढो हरि ति निरम्बरः नागसे त इनाजेय कामोद्यन्महिमार्दिने / जगत्रितयनाथाय नमो जन्मप्रमाथिने रोगपातविनाशाय तमोनुन्महिमायिने / योगख्यातजनार्चाय श्रमोच्छिन्मन्दिमासिने रोगपातविनाशाय तमोनुन्महिमायिने / योगख्यातजनार्चायः श्रमोच्छिन्मन्दिमासिने प्रयत्येमान् स्तवान् वश्मि प्रास्तश्रान्ताकृशार्त्तये। . नयप्रमाणवाग्रश्मिध्वस्तध्वान्ताय शान्तये स्वसमान समानन्द्या भासमान स मानघ / ध्वंसमानसमानस्तत्रासमानसमानतम् सिद्धस्त्वमिह संस्थानं लोकाग्रमगमः सताम् / प्रोद्धर्तुमिव सन्तानं शोकाब्धौ मग्नमझ्यताम् कुन्थवे सुमृजाय ते नम्रयूनरुजायते। . ना महीष्वनिजायते सिद्धये दिवि जायते यो लोके त्वा नतः सोतिहीनोप्यतिगुरुय॑तः / बालोपि त्वा श्रितं नौति को नो नीतिपुरुः कुतः नतयात विदामीश शमी दावितयातन। . रजसामन्त सन् देव वन्देसन्तमसाजर // 78 // // 79 // // 80 // // 81 // // 82 // // 83 //