________________ न हु होइ सोइअव्वो, जो कालगओ दढं समाहीए। सो होइ सोइअव्वो, तवसंजमदुब्बलो जो उ . तित्थयरा गणहारी, सुस्वइणो चक्किकेसवा रामा। संहरिया हयविहिणा, सेसजिएसुं च का गणना ? // 97 // जं चिअ विहिणा लिहिअं, तं चिअ परिणमइ सयललोयस्स। इअ जाणिऊण धीरा, विहुरे वि न कायरा हुंति // 98 // अन्नन्नदेसजाया, अननकुलेसु वड्डिअसरीरा / जिणसासणं पवन्ना, सव्वे ते बंधवा भणिआ // 99 // आजम्मेणं तु जं.पावं, बंधिज्जा मच्छबंधओ। वयभंग काउमाणो, तं चेव य पुणो अट्ठगुणं // 100 // // 2 // पू.आ.श्री विजयसिंहसूरिविरचितम् ॥साम्यशतकम् // अहङ्कारादिरहितं, निश्छद्मसमताऽऽस्पदम् / आद्यमप्युत्तमं कञ्चित्, पुरुषं प्रणिदध्महे उन्मनीभूयमास्थाय, निर्मायंसमतावशात् / जयन्ति योगिनः शश्व-दङ्गीकृतशिवश्रियः .. औदासीन्य क्रमस्थेन, भोगिनां योगिनामयं / / आनन्दः कोऽपि जयतात्, कैवल्यप्रतिहस्तकः साम्यपीयूषपाथोधि-स्नाननिर्वाणचेतसाम् / योगिनामात्मसंवेद्य-महिमा जयताल्लयः आस्तामयं लयः श्रेयान्, कलासु सकलास्वपि / निष्कले किल योगेऽपि, स एव ब्रह्मसंविदे // 3 // // 4 // 139