________________ // 84 // // 85 // / / 86 // // 87 // // 88 // // 89 // मणिमंतोसहिविज्जाउ, जाउ सिझंति ताउ धम्मेणं / देवा कुणंति आणं, अपरिहओ होइ धम्मेणं अरोग-रूव-धण-सयण, संपया-देहमाउ-सोहग्गं / सग्गापवग्गगमणं, होइ सुविनेण धम्मेण जत्थ न जरा न मच्चू, न वाहिणो. नेव सव्वदुक्खाई। सय सुत्थमेव जीवो, वसइ तर्हि सव्वकालम्मि सम्मत्तसाररहिया, जाणंता बहुविहाइ सत्थाइ / अरय व्व तुंबलग्गा, भमंति संसारकंतारे सम्मत्तपत्तजीवा, नारयतिरिया न हुंति कइआ वि। सुहमाणसदेवेहि, उप्पज्जित्ता सिवं जंति चिंतय रे जीव तए, अन्नाणवसेण विवेगरहिएण। विअणाउ अमाणाउ, नरएसु अणंतसो पत्ता अच्छिनिमीलणमित्तं, नत्थि सुहं दुक्खमेव पडिबद्धं / नरए नेरइआणं, अहोनिसं पच्चमाणाणं जं नरए नेरइया, दुक्खं पावंति गोयमा ! तिक्खं / तं पुण निगोअमझे, अणंतगुणिअं मुणेअव्वं सूइहिं अग्गिवण्णाहिं संभिन्नस्स निरंतरं। जावइयं गोयमा ! दुक्खं, गब्भे अट्ठगुणं तओ जायमाणस्स जं दुक्खं, मरमाणस्स जंतुणो / तेण दुक्खेण संतत्तो, न सरई पुव्वजाइयं ता धीर मा विसीअसु, इमासु अइअप्पवेअणासु तुमं। . को उत्तरिउं जलहिं, निबुड्डए गुप्पईनीरे ? / न परो करेइ दुःखं, नेव सुहं कोइ कस्सई देई। जं पुण सुचरिअदुचरिअं, परिणमइ पुराणयं कम्मं / 138 // 90 // // 91 // // 92 // // 93 // // 94 // // 95 //