________________ जह छउमत्थस्स मणो, झाणं भण्णइ सुनिच्चलो संतो। तह केवलिणो काओ, सुनिच्चलो भण्णए झाणं - // 84 // पुव्वप्पओगओ चिय, कम्मविणिज्जरणहेउतो वा वि। सद्दत्थ बहुत्ताओ, तह जिणचंदागमाओ य ... // 85 // चित्ताभावे वि सया, सुहुमोवरयकिरियाइ भण्णंति / जीवोपओगसब्भावओ, भवत्थस्स झाणाइं // 86 // सुक्कज्झाणसुभाविअ-चित्तो चिंतेइ झाणविरमे वि / णिययमणुप्पेहाओ, चत्तारि चरित्तसंपन्नो // 87 // आसवदाराए तह, संसारासुहाणुभावं च। .. भवसंताणमणंतं, वत्थूणं विपरिणामं च // 88 // सुक्काए लेसाए दो, ततियं पुण परमसुक्कलेसाए। थिरयाजियसेलेसं, लेसाइयं परमसुक्कं . // 89 // अवहा-संमोह-विवेग-विउस्सग्गा तस्स होंति लिंगाई। लिंगिज्जइ जेहिं मुणी, सुक्कज्झाणोवगयचित्तो // 90 // चालिज्जइ बीभेइ य, धीरो न परीसहोवसग्गेहिं / सुहमेसु न संमुज्झइ, भावेसु न देवमायासु देहविवित्तं पेच्छइ, अप्पाणं तह य सव्वसंजोगे। देहोवहिवोस्सग्गं, निस्संगो सव्वहा कुणइ // 92 // होंति सुहासव-संवर-विणिज्जराऽमरसुहाई विउलाई। झाणवरस्स फलाई, सुहाणुबंधीणि धम्मस्स // 93 // ते य विसेसेण, सुभासवादओऽणुत्तरामरसुहाइं च। . दोण्हं सुक्काण फलं, परिनिव्वाणं परिल्लाणं // 94 // आसवदारा संसार-हेयवो जंण धम्मसुक्केसु। . संसारकारणाई, तओ धुवं धम्म-सुक्काइं . // 95 // 100