________________ एयाई अकुव्वंतो, जहारिहं अरिहदेसिए मग्गे। ण हवइ पवयणभत्ती, अभत्तिमंतादओ दोसा // 155 // परिवार परिस पुरिसं, खित्तं कालं च आगमं णाउं। कारणजाए जाए, जहारिहं जस्स जं जोग्गं // 156 // परिवारो से सुविहिओ, परिसगओ साहए स वेरग्गं / माणी दारुणभावो, णिसंसपुरिसाधमो पुरिसो // 157 // लोगपगओ निवे वा, अहवण रायादिदिक्खिओ हुज्जा / खित्तं विहमाइ अभाविअंच कालो य अणुगालो . // 158 // दंसणनाणचरित्तं, तवविणयं जत्थ जत्तियं पासे। .. जिणपन्नत्तं, भत्तीइ पूयए तं तहिं भावं // 159 // किं गुणवियालणाए, लिंगं अज्झप्पसुद्धिहेउ त्ति / नमणिज्जं अविसेसा, जह जिणपडिमा जओ भणिअं // 160 // तित्थयरगुणा पडिमासु णत्थि णिस्संसयं विआणंतो। तित्थयर त्ति णमंतो, सो पावइ णिज्जरं विउलं. // 161 // लिंगं जिणपन्नत्तं, एव णमंतस्स णिज्जरा विउला। जइ वि गुणविप्पहीणं, वंदइ अज्झप्पसोहीए // 162 // णियअवगरिसावहिओ, उक्करिसो गुणवओ भगवओ उ। तट्ठवणाभावेणं, पडिमा खलु होइ णमणिज्जा // 163 // दव्वत्तणेण सम्मं, नमणिज्जं होइ साहुलिंगं तु / तं खलु सक्खं भावे, संबद्धं होइ सब्भावे // 164 // जिणपडिमासु जिणाणं, अज्झप्पं ठवणओ व आरोवा। लिंगम्मि उ दव्वत्ता, इय दिटुंतस्स वेहम्म / / 165 // दव्वत्ताभावम्मि य, णिरंतरं दव्वभावणाजणिओ। तत्थ गुणज्झारोवो, किलेसमूलं विवज्जासो / // 166 // 60