________________ // 131 / / // 132 // // 133 // // 134 // // 135 // // 136 // एवं खु सीलवंतो, असीलवंतेहिं मेलिओ संतो।। पावइ गुणपरिहाणि, मेलणदोसाणुभावेणं खणमवि ण खमं काउं, अणाययणसेवणं सुविहियाणं / हंदि समुद्दमुवगयं, उदयं लोणत्तणमुवेइ नणु वंदणिज्जयाए, सुविहिअभावो ण जुज्जए अंगं / जं सो छउमत्थाणं, दु यो लिंगमिय अंगं सुविहिअ दुविहियं वा, णाहं जाणामि हं खु छउमत्थो। लिंगं तु पुअयामी, तिगरणसुद्धेण भावेणं एयमजुत्तं जम्हा, वभिआरेणं ण लिंगमवि अंगं। .. जं भणियमिणं लिंगाभिणिवेसणिरासमहिगिच्च जइ ते लिंग पमाणं, वंदाही णिण्हए तुमं सव्वे। एए अवंदमाणस्स लिंगमवि अप्पमाणं ते नणु एसा पडिबंदी, ण य एयं पगयसाहगं किंची। ण य बज्झकरणओ च्चिय, सुविहिअभावस्स विनाणं जं लाभाइणिमित्तं, असंजया संजयव्व चिटुंति / जयमाणा वि य कारणवसओ अजओवमा हुंति माइट्ठाणापुव्वं, जह गमगं बज्झकरणमिटुं भे / तो तं पि हु वत्तव्वं, केण पयारेण णायव्वं . भन्नइ तं सुविसुद्धं, पुणो पुणो दंसणाइणा णेयं / ' एवं विवज्जए वि, हु, लग्गो सुद्धो असढभावा इत्थं ववहारणओ, सविहियभावम्मि बज्झकरणं पि / . इच्छइ णेच्छइअणओ, भावं चिय तं परं बेइ लिंगं पि य ववहाराभिमयं जं तं विवज्जयाभावे। तइंसणे वि विणओ, ववट्ठिओ जं भणियमेवं / // 137 // // 138 // // 139 // // 140 // // 141 // // 142 // 58