________________ // 119 // // 120 // // 121 // // 122 // // 123 // // 124 // जिणवयणसव्वसारं, मूलं संसारदुक्खमुक्खस्स / सम्मत्तं मइलित्ता, ते दुग्गइवड्ढया हुंति एएसिं पंचण्हं, णिइआणं तह य काहिआईणं / आणाईआ दोसा, पसंसणे वंदणे वावि पासत्थाई वंदमाणस्स, णेव कित्ती ण णिज्जरा होइ / कायकिलेसो एमेव, कुणई तह कम्मबंधं च जे बंभचेरभट्ठा, पाए उंडेंति बंभयारीणं / ते हुंति कुंटमुंटा, बोही य सुदुल्लहा तेसिं सुठ्ठयरं नासंती, अप्पाणं जे चरित्तपन्भट्ठा / गुरुजण वंदावंती, सुस्समण जहुत्तकारिं च अहछंदस्सब्भुट्ठाणंजलिकरणेसु हुंति चउगुरुआ। . अण्णेसुं चउलहुआ, एवं दाणाइसु वि णेयं णिग्गमणभूमिवसइप्पमुहट्ठाणे ठिआ उ एएसिं। गुणणिहिणो वि हु समणा, अवंदणिज्जा जओ भणियं असुइट्ठाणे पडिआ, चंपगमाला ण कीरई सीसे / पासत्थाइट्ठाणेसु वट्टमाणा तह अपुज्जा पक्कणकुले वसंतो, सउणीपारो वि गरहिओ होइ / इय गरहिआ सुविहिया, मज्झि वसंता कुसीलाणं भावुगदव्वं जीवो, कुसीलसंसग्गओ विणस्सिज्जा / थोवो वि तप्पसंगो, अओ णिसिद्धो सुविहिआणं ऊणगसयभागेणं, बिंबाइं परिणमंति तब्भावं। लवणागराइसु जहा, वज्जेह कुसीलसंसग्गिं जह णाम महुरसलिलं, सागरसलिलं कमेण संपत्तं / पावइ लोणीभावं, मेलणदोसाणुभावेणं // 125 // // 126 // // 127 // // 128 // // 129 // // 130 // . 57