________________ ववहारणायठाणं, जे पडिवज्जंति सुगुरुमनिआणं / ते जसविजयसुहाणं, भवंति इह भायणं भव्वा / // 343 // // 3 // // 4 // तृतीयोल्लासः इहपरलोएसु हिओ, सुव्ववहारी गुरू ण मोत्तव्यो / अणुसिट्ठिमुवालंभं, उवग्गहं चेव जो कुणइ // 1 // जो भद्दओ वि ण कुणइ, दितो सीसाण वत्थपत्ताई। सारणयं सो ण गुरू, किं पुण पक्खेण जं भणिअं // 2 // जीहाए विलिहंतो, ण भद्दओ जत्थ सारणा णत्थि / दंडेण वि ताडतो, स भद्दओ सारणा जत्थ जह सरणमुवगयाणं, जीविअववरोवणं नरो कुणइ / एवं सारणिआणं, आयरिओऽसारओ गच्छे इत्तो उवसंपज्जइ, विहिणा गच्छंतरं पि धम्मट्ठी। इय भणिअं जिणसमए, परिवाडि इत्थ वुच्छामि // 5 // नाणे दंसण चरणे, आपुच्छित्ता अणंतरे गमणं / विहिअं इहरा दोसो, णाणइआरा इमे तत्थ // 6 // भय 1 चिंतण 2 वइगाइ 3, संखडि 4 पिसुगाइ 5 अपडिसेहे अ६ / परिसिल्ले 7 पेसविए 8, आयरिअविसज्जिओ सुद्धो // 7 // पणगं च भिन्नमासो, मासो लहुओ अ हुंति, चउगुरुआ। मासलहुं चउलहुआ चउलहु लहुओ अ एएसुं नणु गुरुआणाकहणे, कहं पच्छित्तं हवे विणीअस्स / भण्णइ जिणसुअभत्तीविरहाविणयाओ जं भणिअं // 9 // आणाओ जिर्णिदाणं, ण हु बलिअतराउ आयरिअआणा। . जिणआणाइ परिभवो, एवं गव्वो अविणओ अ // 10 // // 8 //