________________ जो जह सत्तो बहुतरगुणो व तस्साहिअं पि दिज्जाहि। हीणस्स हीणतरगं, झोसिज्ज व सव्वहीणस्स // 331 // पडिसेवाभेएण वि, पच्छित्तं खलु विचित्तयं होइ / जं जीअदाणसुत्तं, एयं पायं पमाएणं // 332 // ठाणंतरस्स वुड्डी, दप्पे आउट्टिआइ वि तहे व / सट्ठाणं वा कप्पे, पडिकमणं वा तदुभयं वा // 333 // आलोअणकालम्मि वि, संकिट्ठविसोहिमेअमुवलब्भ / अहिअं वा हीणं वा, तम्मत्तं वावि दिज्जाहि // 334 // एसो पायच्छित्ते, ववहारो धीरपुरिसपण्णत्तो / भणिओ अ परिसमापिअमिय ववहारस्स दारतिगं // 335 // सद्धापोहासेवणभावेणं जस्स एस ववहारो। सम्मं होइ परिणओ, सो सुगुरू होइ जगसरणं // 336 // जो पुण अव्ववहारी, गुरुणामेणेव धंधणं कुणइ / दुट्ठस्स गाहगस्सिव, तस्स हवे कीस विसासो .. // 337 // संजमगुणेसु जुत्तो, जो ववहारम्मि होइ उवउत्तो / सुअकेवली व पुज्जो, संपइकाले वि सो सुगुरू . // 338 // णवणीयसारभूओ, दुवालसंगस्स चेव ववहारो / जो तं सम्मं भासइ, कह पुज्जो सो ण भावगुरू // 339 // ववहारेण गुरुत्तं, संजमसारं पडुच्च भावेणं / भवजलपडणणिमित्तं, लोहसिलाए व्व इहरा उ सुत्तायरणाणुगओ, ववहारो अत्थि जत्थ अच्छिण्णो। . आरूढो तं सुगुरू परंपरं होइ सिवहेऊ // 341 // संघयणादणुरूवं, जो ववहारे अणुं पि णियसत्तिं / ण णिगूहइ भावगुरू, सो खलु दुक्खक्खयं कुणइ // 342 // // 340 // 46