________________ // 223 // // 224 // // 225 // // 226 // // 227 // // 228 // चोएइ वत्थपाया, कप्पंते वासवासि घेत्तुं जे। जह कारणम्मि सेहो, तह तालचरादिसु य वत्था तद्दिणमुवसामेई, पडिवज्जंतं तु जो उ गिहिलिंगं / मूलायरिअन्नो वि हु, तस्सेव तओ पुरा आसि इण्डिं पुण जीवाणं, उक्कडकलुसत्तणं विजाणित्ता / तो भद्दबाहुणा ऊ, तेवरिसा ठाविआ ठवणा तदिवसं तु जमिच्छइ, णिण्हवपरतित्थिएसु संकेतो। जढसम्मत्तो तस्स उ, सम्मत्तजुए समा तिण्णि एमेव देसिअम्मि वि, सभासिएणं तु समणुसिट्ठम्मि। ओसन्नेसु वि एवं, अच्चाइन्ने ण उण इण्डिं. सारूवी जाजीवं, पुव्वायरिअस्स तेण जाइं पुणो। पव्वाविआइँ ताणि वि, इच्छाऽपव्वाविएसुं तु पुत्ताइआणि मूले, पव्वावइ जाइं लोअखुरमुंडो। आरेणं वासतिगस्सिमाइं एसो य तत्थेव इच्छा अमुंडिएसुं, तिण्हं उवरिं च तस्स संगहणं / कुज्जा मूलायरिओ, संविग्गुद्देसणेणावि अण्णोवगमे पच्छा, पुव्वायरिओ ण होइ इच्छाए / दिति दिसाऽनाणम्मि वि, लिंगं णाहिति तं पच्छा समणीणं समणाण य, अहोवंताण कुलममत्तंकए। वागंतियववहारो, जो खलु तेणेव आभव्वं अंह ण कओ तो पच्छा, तेसि अब्भुट्ठिआण ववहारो। संजइसमाणकुलया, भणंति अम्हं अवच्चाणि गोणीए जं जायं, संसत्ताए परस्स गोणेणं / तं सव्वं गोवइणो, ण हवइ तं गोणवइणो उ // 229 // // 230 // // 231 // // 232 // // 233 // // 234 // 37