________________ तं घोसणयं सोउं, धम्मकही कोइ सन्निसंथवओ। चिट्ठइ समागओ तं, गच्छ त्ति य खित्तिओ भणइ // 187 // सड्डाण निबंधेण य, दोण्ह वि तत्थ ट्ठिआण इच्छाए / सच्चित्तं उवही वा, अखित्तिए जाउ णाहवइ // 188 // इत्थ सकोसमकोसे, खित्तं सावरगहं वितिण्णम्मि। कालम्मि असंथरणे, एसा साहारणे मेरा // 189 // अस्थि हु वसहग्गामा, कुदेसनगरोवमा सुहविहारा / बहुगच्छुवग्गहकरा, सीमाछेएण वसियव्वं // 190 // जत्थ खलु तिण्णि गच्छा, पण्णरसुभया जणा परिवसंति। .. एयं वसभक्खेत्तं, तव्विवरीअं भवे इयरं // 191 // बत्तीसं च सहस्सा, चिटुंति सुहं जहिं तमुक्किटुं। उउबद्धम्मि जहण्णे, तिण्णि य वासासु सत्त गणा // 192 // तुझंतो मम बाहिं, तुज्झ सचित्तं ममेतरं वा वि। आगंतुग वत्थव्वा, थीपुरिसकुलेसु य विरागा // 193 // एवं सीमच्छेयं, करिति साहारणम्मि खित्तम्मि। पुव्विं ठिएसु अण्णे, जे आगच्छंति पुण तत्थ // 194 // खेत्ते उवसंपन्ना, ते सव्वे णियमओ उ बोधव्वा। आभव्वं पुण तेसिं, अखित्तियाणं हवे इणमो // 195 // नाल पुरपच्छसंथुय मित्ता य वयंसया य सच्चित्ते / आहार मत्तगतिगं, संथारग वसहि अच्चित्ते // 196 // वत्थाइअं तु दिन्नं, कारणवसओ तहा अदिन्नं पि। असमत्ताजायाणं, णाहव्वं किंचि ओहेणं || 197 // एगदुगपिंडिआण वि, उउबद्धे उग्गहो समत्ताणं / कारणफिडिआण समो, उवसंपन्ने तु संकमइ . // 198 // .34