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________________ // 175 // // 176 // // 177 // // 178 // // 179 // // 180 // पुव्विं विणिग्गया जइ, पत्ता कारणवसेण पच्छा य। तो तेसि चियखित्तं, णो पुण णिक्कारणठिआणं पच्छा विणिग्गओ विहु, पावइ खित्तं सहावसिग्घगई। पुव्विं पत्तो मग्गा, कयगइभेओ ण उण वंको समयं पि पत्थिएK, पावइ खित्तं सहावसिग्घगई। समयं पत्ता समयं, अणुण्णवंता य समभागी पच्छा विणिग्गया खलु, पच्छा पत्ता य हुंति समभागी / समगाणुण्णवणाए, पुव्वाणुण्णाइ तेसिं तु सीमाइसु पत्ताणं, दोण्ह वि पुव्वं अणुण्णवइ जो उ। सो होइ खेत्तसामी, णो पुण दप्पेण जो ठाइ समगं पत्ता साहारणं तु खित्तं लहंति जे वग्गा। अच्छंति संथरं ते, असंथरे ठंति जयणाए पत्ताण अणुनवणा, सारूवियसिद्धपुत्तमाईणं। . बाहिं ठिआण जयणा, जा आसाढे सिआ दसमी संविग्गबहुलकाले, एसा मेरा पुरा य आसी अ। इयरबहुले उ संपइ, पविसंति अणागयं चेव सुच्चा उट्टिसमेओ, णो आपुच्छी तहा दुरापुच्छी। अजयट्ठिआउ एए, कुणंति कलहं जइजणेहिं सुच्चा उट्टिठियाणं, णामग्गहणं पि णेव इच्छंति / दुहं तु विहिजिआणं, विणुग्गहं भत्तदाणं तु जयणाइ ठिआण-पुणो, असइप्पमुहेण कारणेण तयं / तुल्लं जं ते सुद्धा, भावविसुद्धीइ खवगु व्व अतिसंथरणे इयरे, उवसंपन्ना उ खित्तियं हुंति / इट्ठा रुइए खित्ते, घोसणया वा समोसरणे // 181 // // 182 // // 183 // // 184 // // 185 // // 186 // 33
SR No.004455
Book TitleShastra Sandesh Mala Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2005
Total Pages322
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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