________________ तो सेविउं पवत्ता, आहारादीहिँ तं तु कारणिआ। अह छिन्दिउं पवत्तो, णिस्साए सो उ ववहारं // 91 // पच्चत्थीहिमवगयं, छिंदएँ णिस्साइ एस ववहारं / को अण्णो णायविऊ, हुज्ज त्ति य चिंतियं तेहिं - // 92 // अह अण्णया पघुटे, णायं काउं तु संघसमवाए। कोइ निउणो समेओ, आगंतव्वं जओऽवस्सं // 93 // घुटुम्मि संघकज्जे, धूलीजंघो वि जो ण एज्जाहि। कुलगणसंघसमाए, लग्गइ गुरुए चउम्मांसे // 94 // जं कार्हिति अकज्जं, तं पावइ सइ बले अगच्छंतो। अण्णं च तओ ओहाणमाइ जं कुज्ज तं पावे .. // 95 // तम्हा उ संघसद्दे, घुढे गंतव्व धूलिजंघेणं / धूलीजंघणिमित्तं, ववहारो उट्ठिओ सम्म // 96 // तेणागएण णायं, तेल्लघयाइहिँ एस संगहिओ। कज्जविवज्जयकारी, माई पावोवजीवी य // 97 // सो अच्छइ तुसिणीओ, ता जा उस्सुत्तभासिअं सुणइ। कीस अकज्जं कीरइ, वारेइ तओ अ समएणं // 98 // जंपइ भेअणिमित्तं, साहूणं जाणणाणिमित्तं च।। णिद्ध महुरं णिणायं, विणीअमवि तं च ववहारं // 99 // एवं णिहोडणाए, कयाइ णाएण तेण गीयत्था। सुत्तं उच्चारेउं, एअस्स दिसं अवहरंति // 100 // जइ हुज्ज अप्पदोसो, आउट्टो वि य तया पुणो दिति। . बहुदोसेऽणाउट्टे, जावज्जीवं ण तं दिति . // 101 // जह धणनिटुं सत्तं, दाणे णस्सइ पडिग्गहे होई। . इत्थ वि णासुप्पाया, तह णेया सुत्तणीईए // 102 // 26