________________ // 55 // / / 56 // // 57 // // 58 // // 59 // // 60 // आगमसुआ सुत्तं, इत्थं आणा य धारणा अत्थो। आयरणा पुण जीअं, बलिअत्तं तेण उक्कमओ परमत्थओ अ सव्वो, ववहारो होइ आगमो चेव / जेण तयं उवजीवइ, सक्खं व परंपराए वा पंचविहो ववहारो, एसो खलु धीरपुरिसपण्णत्तो / भणिओ अओ परं पुण, इत्थं ववहारिणो वुच्छं णोआगमओ दव्वे, लोइअ-लोउत्तरा उ ते दुविहा / लोअम्मि उ लंचाए, विवायभंगे पवढ्ता लोउत्तरा अगीआ, गीआ वा हुंति लंचपक्खेहिं / जं तेसिमपाहण्णं, मोहा तह रागदोसेहि भावम्मि लोइआ खलु, मज्झत्था ववहरंति ववहारं / पियधम्माइगुणड्डा, लोउत्तरिआ समणसीहा पियधम्मा दढधम्मा, संविग्गा चेवऽवज्जभीरू अ। सुत्तत्थतदुभयविऊ, अणिस्सियववहारकारी य पियधम्मे दढधम्मे, य पच्चओ होइ गीय संविग्गे। रागो उ होइ णिस्सा, उवस्सिओ दोससंजुत्तो अहवा आहारादी, दाहिइ मज्झं तु एस णिस्सा उ। सीसो पडिच्छओ वा, होइ उवस्साकुलादी वा इयरगुणाणुगमम्मि वि, छेयत्थाणं अपारगत्तम्मि / ववहारित्तं भावे, णो खलु जिणसासणे दिटुं जो सुअमहिज्जइ बहु, सुत्तत्थं च निउणं न याणाइ / कप्पे ववहारम्मि य, सो न पमाणं सुअहराणं जो सुअमहिज्जइ बहु, सुत्तत्थं च णिउणं वियाणाइ। कप्पे ववहारम्मि य, सो उ पमाणं सुअहराणं 23 // 61 // // 62 // // 63 // // 64 // // 65 // // 66 //