________________ // 19 // [ // 20 // // 21 // . . // 22 // .. // 23 // // 24 // दप्प अकप्प णिरालंब चियत्ते अप्पसत्थवीसत्थे। अपरिक्ख अकडजोगी, अणाणुतावी अणिस्संको दसण नाण चरित्ते, तव पवयण समिइ गुत्तिहेउं वा। साहम्मिअवच्छल्लेण वा वि कुलओ गणस्सेव संघस्सायरियस्स य, असहुस्स गिलाण बालवुड्डस्स / उदय ग्गि चोर सावय, भय कंतारा वई वसणे ठावेउ दप्पकप्पे, हेट्ठा दप्पस्स दस पए ठावे। कप्पस्स चउव्वीसइ, तेसिमह हारस पयाई दप्पम्मि असीइसयं, चत्तारि सयाणि हुंति बत्तीसं। दप्पम्मि य संजोगा, पढमाइपएहिँ अभिलप्पा सोऊण तस्स पडिसेवणं आलोअणाकमविहिं च / आगम पुरिसज्जायं, परिआय बलं च खिंत्तं च आहारेउं सव्वं, सो गंतूणं पुणो गुरुसगासं / तेसि णिवेएइ तहा, जहाणुपुब्बिं गयं सव्वं सीसस्स देइ आणं, पएहिँ संकेइएहिँ सो निउणो। देइ इमं पच्छित्तं, एसो आणाइ ववहारो / ' उद्धारणा विधारण, संधारण संपधारणा चेव। चत्तारि धारणाए, एए एगट्ठिया हुति बहुगुणजुत्ते पुरिसे, तिगविरहे होइ किंचि खलिएसु / अत्थपएहि उ एसा, अणुओगविहीइ लद्धेहिं अहवा जेणं सोही, कीरंती अण्णया हवे दिट्ठा / तारिसकारणपुरिसे, तं दाणं धारणाए उ वेयावच्चकरो वा, सीसो वा देसहिंडगो वा वि। दुम्मेहत्ता सत्थं, ण तरइ सव्वं तु धारेउं // 25 // // 26 // // 27 // // 28 // // 29 // * // 30 // 20.