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________________ सेढीए भट्ठस्स वि, भज्जं ववहारओ उ मिच्छत्तं / जं होइ अभिणिवेसे, अणभिणिवेसे अ णो हुज्जा // 132 // इत्तो महाणिसीहे, भग्गस्स वि णंदिसेणणाएणं / सम्मत्तरक्खणटुं, णिद्धंधसया णिसेहविही // 133 // इत्थं संजमसेटिं, पसंगसंगइसमागयं भणिमो। अपरिमियठाणकंडगछट्ठाणगरासिणिप्फण्णं // 134 // तत्थाणंता उ चरित्तपज्जवा हुंति संजमट्ठाणं / संखाईआणि हु ताणि कंडगं होइ णायव्वं // 135 // संखाईआणि उ कंडगाणि छट्ठाणगं विणिद्दिटुं। छट्ठाणा उ असंखा, संजमसेढी मुणेयव्वा // 136 // ठाणेहिँ पढमठाणा, जहुत्तरमणंतभागवुड्डेहिं / कण्डगमंगुलखित्तासंखिज्जंसप्पमाणेहिं / / 137 // कंडगमित्ताणंतंसाहिअठाणंतराइँ ठाणाई / कंडगमित्ताइं तओ, हुंति असंखंसवुड्डाई // 138 // चरमाउ तओ पढमं, अंतरिअमणंतभागवुड्डेहिं। संखंसाहिअ ठाणं, कंडगमित्तेहिँ ठाणेहिं // 139 // बिइआइआणि ताणि वि, पुव्विंतरिआणि कंडगमिआणि / एवं संखासंखाणंतगुणेहि पि वुड्डाई // 140 // छट्ठाणसमत्तीए, कमेण अण्णाइँ ताइँ उटुंति / हुंति समा छट्ठाणा, एवमसंखेहिँ लोगेहिं // 141 // सव्वजिएहिँ अणंतं, भागं च गुणं असंखलोगेहि। . जाण असंखं संखं, संखिज्जेणं च जिटेणं // 142 // एयं चरित्तसेटिं, पडिवज्जइ हिट्ठ कोइ उवरि वा। जो हिट्ठा पडिवज्जइ, सिज्झइ णियमा जहा भरहो // 143 // 12
SR No.004455
Book TitleShastra Sandesh Mala Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2005
Total Pages322
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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