________________ // 108 // // 109 // || 110 // // 111 // // 112 // // 113 // निवसरिसो आयरिओ, लिंगं मुद्दा उ सक्करा चरणं / पुरिसा य हुंति साहू, चरित्तदोसा मुइंगाओ एसणदोसे सीयइ, अणाणुतावी ण चेव वियडेइ / णेव य करेइ सोहिं, ण य विरमइ कालओ भस्से मूलगुण उत्तरगुणे, मूलगुणेहिं तु पागडो होइ।. उत्तरगुणपडिसेवी, संचयतोऽछेयओ भस्से अंतो भयणा बाहिं, तु णिग्गए तत्थ मरुगदिटुंतो / संकरसरिसवसगडे, मंडववत्थेण दिटुंतो पक्कणकुले वसंतो, सउणीपारो वि गरहिओ होइ / इय गरहिआ सुविहिया, मज्झि वसंता कुसीलाणं संकिन्नवराहपदे, अणाणुतावी य होइ अवरद्धे। उत्तरगुणपडिसेवी, आलंबणवज्जिओं वज्जो हिट्ठट्ठाणठियो वी, पावयणिगणयट्ठाउ अधरे उ। कडजोगि जं निसेवइ, आदिणियंठु व्व सो पुज्जो कुणमाणो वि य कडणं, कयकरणो णेव दोसमब्भेइ। अप्पेण बहुं इच्छइ, विसुद्ध आलंबणों समणो संजमहेउं अजयत्तणं पि ण हु दोसकारगं बिति। पायण वोच्छेयं वा, समाहिकारो वणादीणं तत्थ भवे जइ एवं, अण्णं अण्णेण रक्खए भिक्खू / अस्संजया वि एवं, अण्णं अण्णेण रक्खंति न हु ते संजमहेडं, पालिति असंजता अजतभावे। अच्छित्तिसंजमट्ठा, पालिति जती जतिजणं तु कुणइ वयं धणहेडं, धणस्स धणिओ उ आगमं णाउं। इय संजमस्स वि वओ, तस्सेवट्ठा ण दोसाय // 114 // // 115 // // 116 // // 117 // . // 118 // // 119 //