________________ // 43 // // 44 // // 45 // // 46 // // 47 // // 48 // हिंस्यकर्मविपाके यदुष्टाशयनिमित्तता / . हिंसकत्वं न तेनेदं वैद्यस्य स्याद्रिपोरिव इत्थं सदुपदेशादेस्तन्निवृत्तिरपि स्फुटा / सोपक्रमस्य पापस्य नाशात्स्वाशयवृद्धितः अपवर्गतरोर्बीजं मुख्याऽहिंसेयमुच्यते / सत्यादीनि व्रतान्यत्र जायन्ते पल्लवां नवाः अहिंसासंभवश्चेत्थं दृश्यतेऽत्रैव शासने / अनुबन्धादिसंशुद्धिरप्यत्रैवास्ति वास्तवी' हिंसाया ज्ञानयोगेन सम्यग्दृष्टेर्महात्मनः / . तप्तलोहपदन्यासतुल्याया नानुबन्धनम् सतामस्याश्च कस्याश्चिद् यतनाभक्तिशालिनाम् / अनुबन्धो ह्यहिंसाया जिनपूजादिकर्मणि हिंसानुबन्धिनी हिंसा मिथ्यादृष्टेस्तु दुर्मतेः / अज्ञानशक्तियोगेन तस्याहिंसापि तादृशी येन स्यान्निह्नवादीनां दिविषदुर्गतिकमात् / हिंसैव महती तिर्यङ्नरकादिभवान्तरे साधूनामप्रमत्तानां सा चाहिंसानुबन्धिनी / हिंसानुबन्धिविच्छेदाद् गुणोत्कर्षो यतस्ततः मुग्धानामियमज्ञत्वात् सानुबन्धा न कहिचित् / ज्ञानोद्रेकाप्रमादाभ्यामस्या यदनुबन्धनम् एकस्यामपि हिंसायामुक्तं सुमहदन्तरम् / भाववीर्यादिवैचित्र्यादहिंसायां च तत्तथा सद्यः कालान्तरे चैतद्विपाकेनापि भिन्नता / .. प्रतिपक्षान्तरालेन तथाशक्तिनियोगतः // 49 // // 50 // // 51 // // 53 // // 54 //