________________ // 22 // कुतर्कग्रन्थसर्वस्वगर्वज्वरविकारिणी। एति दृङ्निर्मलीभावमध्यात्मग्रन्थभेषजात् धनिनां पुत्रदारादि यथा संसारवृद्धये / तथा पाण्डित्यहप्तानां शास्त्रमध्यात्मवर्जितम् अध्येतव्यं तदध्यात्मशास्त्रं भाव्यं पुनः पुनः / अनुष्ठेयस्तदर्थश्च देयो योग्यस्य कस्यचित् // 23 // . . . // 24 // अध्यात्मस्वरूपाधिकारः // 2 // . भगवन् किं तदध्यात्मं यदित्थमुपवर्ण्यते / . शृणु वत्स यथाशास्त्रं वर्णयामि पुरस्तव // 1 // गतमोहाधिकाराणामात्मानमधिकृत्य या / प्रवर्तते क्रिया शुद्धा तदध्यात्म जगुर्जिनाः' // 2 // सामायिकं यथा सर्वचारित्रेष्वनुवृत्तिमत् / अध्यात्म सर्वयोगेषु तथानुगतमिष्यते . अपुनर्बन्धकाद्यावद्गुणस्थानं चतुर्दशम् / क्रमशुद्धिमती तावत् क्रियाध्यात्ममयी मता आहारोपधिपूजद्धिगौरवप्रतिबन्धतः / भवाभिनन्दी यां कुर्यात् क्रियां साध्यात्मवैरिणी // 5 // क्षुद्रो लाभरतिर्दीनो मत्सरी भयवान् शठः / अज्ञो भवाभिनन्दी स्यान्निष्फलारम्भसंगतः . // 6 // शान्तो दान्तः सदा गुप्तो मोक्षार्थी विश्ववत्सलः / निर्दम्भां यां क्रियां कुर्यात् साध्यात्मगुणवृद्धये // 7 // अत एव जनः पृच्छोत्पन्नसंज्ञः पिपृच्छिषुः / साधुपार्श्व जिगमिषुर्धर्मं पृच्छन् क्रियास्थितः // 4 // // 8 // 48.